घटते रकबे के दौर में अधिक उत्पादन के लक्ष्य की चुनौतियां

भारत सरकार ने मौजूदा फसल वर्ष 2022-23 में 32.8 करोड़ टन खाद्यान्न पैदावार का लक्ष्य रखा है। हालांकि पिछले साल 2021-22 में कुळ 31.57 करोड़ टन अनाज की पैदावार हुई थी। इस साल इसे 4% बढ़ा दिया गया है। सरकार के सामने इस समय कईं तरह की चुनौतियां हैं- पहली यह है कि धान का रकबा घटने के कारण सरकार को गैर बासमती चावल के निर्यात पर 20% शुल्क बढ़ा दिया, वहीं खरीफ व रबी की फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कमर कस ली है।

विपरीत हालात में कैसे प्राप्त होगा लक्ष्य

मौजूदा साल देश के बड़े हिस्से में मानसून की अच्छी बारिश नहीं होने के बावजूद फसल वर्ष 2022-23 के लिए खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 32.8 करोड़ टन निर्धारित किया गया है। जो कि अपने आप में बड़ी चुनौती है, क्योंकि इस बार खरीफ की फसल का रकबा पिछले साल की तुलना में घट गया है। इसीलिए सरकार हर वो संभव प्रयास कर रही है, जिससे खरीफ की पैदावार बढ़ सके और रबी की फसलों का रकबा भी बढ़ाया जा सके। तभी निर्धारित लक्ष्य को पाया जा सकेगा।

रबी सीजन का बढ़ाया लक्ष्य

बी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की पैदावार का लक्ष्य भी बढ़ाकर 11.2 करोड़ टन निर्धारित किया गया है। जबकि पिछले रबी सीजन में गेहूं की पैदावार 10.6 करोड़ टन पर सिमट गई थी। पिछली बार गेहूं की पकाई के समय से पहले ही तेज गर्मी ने गेहूं के दाने को पूरी तरह पकने नहीं दिया था, जिसके कारण दाना पिचक गया था और वजन भी कम हो गया था।

खरीफ की फसलों का रकबा घटा, पैदावार का लक्ष्य बढ़ाया

देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ और कुछ में सूखे जैसे हालत की वजह से ही खरीफ फसलों की बोआई का रकबा घट गया है। खासकर प्रमुख धान उत्पादक राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में कम बारिश अथवा सूखे जैसे हालत होने के कारण इस बार पैदावार काफी कम हो सकती है। फिर भी धान की खरीफ सीजन की पैदावार का लक्ष्य 112 करोड़ टन निर्धारित किया गया है। खरीफ फसलों की बोआई में कमी दर्ज की गई है। खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान की रोपाई रकबा पिछले खरीफ सीजन के मुकाबले 5.6 प्रतिशत घट गया है। खरीफ सीजन में बोआई रकबा घटा है जबकि पैदावार का लक्ष्य बढ़ा दिया गया है। इसको प्राप्त करने के लिए मैराथन तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। किसानों को खेती के लिए हरसंभव मदद मुहैया कराने के लिए राज्यों को साथ लिया जा रहा है।

रबी सीजन पर है फोकस

रबी सीजन की फसलों में गेहूं, चना और सरसों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा होती है। रबी फसलों की बोआई नवंबर से जनवरी तक होती है, जबकि कटाई अप्रैल और मई में की जाती है।

गेहूं का उत्पादन निर्धारित लक्ष्य से तीन प्रतिशत कम रहा

2021-22 में खाद्यान्न का उत्पादन 31.57 करोड़ टन के लक्ष्य को छू लिया था। धान की रिकार्ड पैदावार 13.02 करोड़ टन हुई। गेहूं का उत्पादन निर्धारित लक्ष्य से तीन प्रतिशत कम 10.68 करोड़ टन हुआ। गेहूं की पैदावार को फसल पकते समय तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि से नुकसान पहुंचा। गेहूं की पैदावार में गिरावट की आधिकारिक सूचना मिलते ही सरकार ने फौरन गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी थी।

उत्पादकता बढ़ाने के उपाय समझाए

सरकार ने खाद्यान्न पैदावार का लक्ष्य बढ़ाकर निर्धारित किया है। इसी सप्ताह रबी तैयारी सम्मेलन में कृषि मंत्रालय राज्यों को उत्पादकता बढ़ाने के उपायों को समझाने की कोशिश करता रहा। फसलों की उत्पादकता के लिए फसल विविधीकरण, इंटरकापिंग, उन्नत प्रजाति के बीजों की आपूर्ति और कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों में आधुनिक तकनीक का सहारा लिया जाना चाहिए। जिन क्षेत्रों में मानसून की कम बारिश हुई है, वहां की मिट्टी में नमी को बनाए रखने के उपाय किए जाने चाहिए। सरकार की प्राथमिकता फसल विविधीकरण के तहत गेहूं और धान की फसलों की खेती की जगह दलहनी, तिलहनी व निर्यात होने वाली फसलें हैं। खेतों में नमी की कमी से भी गेहूं की फसल प्रभावित हो सकती है।

अनाज की किल्लत से बचने के उपाय

अनाज की किल्लत के कारण केंद्र सरकार ने देश में अनाज की कमी से बचने के लिए टुकड़ा चावल के निर्यात पर पाबंदी और गैर बासमती चावल पर 20% निर्यात शुल्क लगाया है। सरकार ने इस बार चावल का उत्पादन घटने के मद्देनजर यह फैसला लिया है। इस बार गर्मी बढ़ जाने के कारण सावन की बिजाई में गिरावट आई है। यह गिरावट उन राज्यों आई है जहां धान ज्यादा होता है।

धान की फसल से किया किसानों ने कपास पर पलायन

इस बार कपास के रेट ज्यादा होने के कारण भी किसानों ने धान से ज्यादा कपास की तरफ पलायन किया है। भले ही सरकारों ने चावल की निर्यात पर पाबंदी लगाकर समय से पहले समस्या का समाधान निकालने की तैयारी कर ली है, लेकिन लंबे समय के लिए इस मामले में ठोस योजना व रणनीति बनाने की आवश्यकता है।

जल बचाओ मुहिम से किसानों ने किया धान से पलायन

देश भर में जल बचाओ अभियान के कारण भी किसानों ने धान की फसल से पलायन किया है। भले ही भू-जल स्तर के गिरने के चलते केंद्र व राज्य सरकारें दो-तीन दशकों से धान की बिजाई कम करने के लिए प्रयत्नशील हैं लेकिन इस बार चावल के उत्पादन में कमी ने सरकारों की कृषि योजनाओं को सोचने पर मजबूर जरूर किया है।

कैसे होगा समस्याओं का समाधान और क्या रहेंगी चुनौतियां

देश को एक बड़ी मात्रा में चावल की आवश्यकता हर साल होती है, परंतु इस सार धान के घटे रकबे ने सरकार के सामने संकट खड़ा कर दिया है। सरकार को अब धान के खिलाफ चल रही मुहिम पर पुनर्विचार करना होगा। अन्यथा देश चावल के संकट में कभी भी फंस सकता है। जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा संकट बन रहा है। समय आ गया सरकार कृषि वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का सामना करने के लिए कृषि खोज के लिए विशेष प्रोग्राम दिए जाएं।

भारत में फिलहाल पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह की खेती होती है, हालांकि बड़ी मात्रा में आज भी पारंपरिक खेती ही की जा रही है। इसलिए किसान नई जानकारी एवं तकनीक प्राप्त कर परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हुआ। हमारी कृषि अमेरिका, इजरायल व अन्य विकसित देशों से काफी पीछे है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकारों एवं किसानों के बीच में कोई तालमेल नहीं है। सरकार के प्रयासों के बावजूद किसानों में जागरूकता की कमी है यानी सरकार के प्रयास पर्याप्त नहीं है।

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