पॉलीहाउस में करेले (Bitter Gourd) की खेती करें और मुनाफा कमाएं

करेले (Bitter Gourd) की खेती में रखें इन बातों का विशेष ध्यान

नमस्कार किसान साथियो!
आज हम करेले की खेती से जुड़ी जानकारियां आपसे सांझा करेंगे, ताकि करेले की खेती करते वक्त आपको क्या सावधानियां रखनी हैं और किन बातों का विशेष ख्याल रखना है ताकि आपके करेले अच्छी तरह फल-फूल सकें और बढ़िया उत्पादन के साथ आपको दमदार मुनाफा भी मिल जाए। हर इंसान को उसकी मेहनत का फल मिल जाए, इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। आइए आज हम करेले की खेती से जुड़े मौसम, जलवायु और वातावरण संबंधी बातों पर जानकारी सांझा कर रहे हैं।


करेले (Bitter Gourd) की खेती के लिए पॉलीहाउस (Polyhouse) के अन्दर रात में 16-18 डिग्री सेन्टीग्रेड तथा दिन में 20-30 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम होना चाहिए।
जहां तक नमी की बात है तो भूमि और वातावरण दोनों में नमी की बेहद जरूरत होती है। 60-80% भूमि एवं वातावरण में नमी की आवश्यकता होती है। यदि तापक्रम 10 डिग्री सेन्टीग्रेट से कम एवं नमी 30% से कम होती है तो इसका सीधा प्रभाव करेले के उत्पादन पर पड़ता है, क्योंकि ऐसा होने पर फल अपना पूरा विकास नहीं कर पाता। विकास नहीं होने पर करेले के साइज में अंतर आ जाता है।
कुछ किसान साथी हमसे अक्सर पूछते हैं कि पॉलीहाउस (Polyhouse) में करेले के बीज किस अनुपात में लगाने चाहिएं। औसतन कुल 1800-1850 बीज प्रतिनाली ; 200 वर्गमीटर क्षेत्र फल या 10 ग्राम/नाली या 9-12 बीज प्रति वर्ग मीटर लगाना चाहिए। वहीं मैदानी क्षेत्रों के बड़े-बड़े पॉलीहाउसों में औसतन 4500-5000 बीज की प्रति 1000 वर्ग मीटर वाले प्रति फसल की दर से आवश्यकता होती है।

पॉलीहाउस (Polyhouse) में करेला 30 सेंमी. वाले ड्रिप लेटरल पर लगता है। यदि ड्रिप लाइन नहीं भी लगती है तो करेले के पौध की आपसी दूरी 60 सेंमी. एवं कतार से कतार की दूरी 90 सेंमी रखनी चाहिए।


करेले (Bitter Gourd) के बीज की बिजाई या रोपण के लिए मैदानी जमीन में सबसे बढ़िया एवं उत्तम समय सितम्बर-अक्टूबर महीने का होता है। मैदानी क्षेत्रों के पॉलीहाउस में मई अन्त से पूरे जून माह में खेत को खुला छोड़ देना सही रहता है। खाली जमीन में जुताई करते रहना चाहिए और जमीन को समतल भी करते रहना चाहिए। जुताई से पहले खाद व दवा डालकर भूमि के उर्वरकता को बढ़ा लेना चाहिए।भूमि शोधन के साथ-साथ पुराने पॉलीहाउस की मरम्मत, ड्रिप सिंचाई के पम्पों की मरम्मत, धुलाई, सफाई, क्यारियां बनाना आदि काम कर लेने चाहिए।


ऊँची लम्बी क्यारियां बना लें और उनको अच्छी तरह से समतल कर लें। उसके बाद 5 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से गोबर कम्पोस्ट खाद या वर्मीकम्पोस्ट खाद को फैलाकर 2-4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में फार्मडिहाइड या दो चम्मच कार्बेन्डाजिम 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। उसके बाद पारदर्शी पन्नी (पॉलीथीन) से दो सप्ताह के लिए ढक जरूर दें। नहीं तो इन पर खतपतवार की जमावट बहुत ज्यादा हो जाएगी और वो जमीन की सारी खुराक को खा जाएंगे।


पॉलीहाउस (Polyhouse) करेलाः पॉलीहाउस (Polyhouse) में करेला की बढ़िया एवं अधिक उत्पादन के लिए शाखाओं की कटाई-छंटाई जरूर करें। जब करेले की फसल 15-20 दिनों की हो जाए तो शुरुआत में नीचे से एक या दो शाखाओं को काट कर हटा देते हैं। उसके पश्चात् मुख्य तने एवं शाखाओं को रस्सी द्वारा उसकी निचले हिस्से में बांध कर तने को लपेटते हुए ऊपर छत की दिशा में ले जाकर बांध देना चाहिए।
पुरानी व रोगी शाखाओं को काटते रहना चाहिए अन्यथा पोषक तत्वों का नुकसान हो जाता है। प्लास्टिक की रस्सी, पॉलीथीन टेप, सुतली की रस्सी का ही प्रयोग पौधे को लपेटने के लिए करें। ऊपर रस्सी बांधने के लिए ऐसे तार को बांधना ठीक रहता है जो पौधे के साथ फलों का वजन झेलने में सक्षम हो और इसके साथ यह भी ध्यान रखना जरूरी होता है कि रस्सी फूलों को कोई नुकसान न पहुंचाए।


भारत में मिलने वाली अच्छी प्रजातियों को ही लगाना चाहिए। कुछ किसान साथी अच्छी प्रजाति की भी डिटेल मांगते हैं। इसमें नर एवं मादा फूल एक ही पौधे पर अलग-अलग आते हैं। करेले (Bitter Gourd) में परागण क्रिया को अपने हाथ से करें या सप्ताह के लिए छोड़ दें। उसके बाद रोपण करें या बीज लगायें। यदि सभी उर्वरक अलग-अलग नहीं प्राप्त हो पा रहे हों तो 200 ग्राम डी.ए.पी. प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिला लें तथा यूरिया का 15-15 ग्राम पूरी फसल में प्रति वर्ग मीटर की दर से 3-4 बार भूमि में छिड़काव करें। यूरिया का छिड़काव जमीन में हमेशा नमी की उपस्थिति में करें।


पॉलीहाउस (Polyhouse) में करेले (Bitter Gourd) को दो विधि से लगाया जाता है। एक तो सीधे बीज की बुआई कर देते हैं। दूसरे में बीज से पौध बनाकर रोपण किया जाता है। करेलों को तोड़ने के बाद धूप में नहीं रखना चाहिए। धूप में रखने से करेलों का रंग पीला पड़ने लग जाता है। फलों को बाजार में ले जाने से पहले उन्हें अच्छे और कम अच्छे दो हिस्सों में बांट लेना चाहिए। ताकि अच्छे करेलों का बढ़िया भाव मिल जाए और जो कम अच्छे हैं, उनके कारण बढ़िया वालों का भाव कम न हो। औसतन हर पौधे पर 8 किलो करेला उतरता है।


करेले (Bitter Gourd) की परागण प्रक्रिया को सुबह 7-10 बजे के मघ्य कराना ठीक रहता है। हाथ से परागण करने के लिए नर फूल को तोड़ कर मादा फूल के मुँह पर हलके हाथ से रगड़ देते हैं। इस प्रकार एक नर फूल से 2 मादा फूल का परागण कर सकते हैं। यह प्रक्रिया फूल आने के साथ प्रतिदिन करते हैं।


टपक सिंचाई प्रणाली लगा लें तो इससे घुलनशील उर्वरक एवं पानी दोनों को एक साथ दिया जा सकता है। ध्यान रहे कि प्रारम्भ में पौधें को पानी की कम मात्रा दें अन्यथा कमर तोड़ (डेम्पिंग ऑफद्ध रोग) लगने की आशंका बढ़ जाती है।


पॉलीहाउस (Polyhouse) में खेतों की तैयारी के पूर्व 8-10 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से गोबर खाद, केंचुए की खाद, पत्ती की खाद आदि को मिला कर दें। पुनः उसी के साथ 100 ग्राम. यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्पफेट, 50 ग्राम पोटाश, 100 ग्राम नीमखली एवं 1-2 चम्मच ट्राइकोडर्मा या बाविस्टीन नामक फफूंदीनाशी दवा को मिलाकर एक प्लास्टिक ट्रे जिसको प्रो ट्रे या नर्सरी ट्रे के नाम से जानते हैं या पॉलीथीन की छोटी-छोटी थैलियों द्वारा लगाते हैं। प्रो ट्रे में कोकोपीट, वर्मीकुलाइट एवं परलाइट नामक माध्यम का 3:1:1 के अनुपात में मिश्रण बनाकर बीजों को लगाते हैं। पॉलीथीन बैग में कम्पोस्ट खाद, बालू एवं मिट्टठ्ठी 2:1:1 के अनुपात से मिलाकर नर्सरी तैयार करते हैं। जमने के बाद समय-समय पर पानी, उर्वरक एवं दवा देते रहते हैं। करेले की नर्सरी पौध पॉलीहाउस के अन्दर 20-25 दिन में रोपण योग्य हो जाती है।


करेले (Bitter Gourd) की फसल को बीज बोने से लेकर पहली फसल आने में लगभग 55-60 दिन लगते हैं। आगे की तुड़ाई 2-3 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए, क्योंकि करेले के फल बहुत जल्दी पक जाते हैं और लाल हो जाते हैं। फलों को तेज धर वाले चाकू या कैंची से काटें अन्यथा कर पौधे के टूटने का डर रहता है। सही खाद्य परिपक्वता अवस्था में फलों का चयन व्यत्तिगत प्रकार और किस्मों पर निर्भर करता है।


प्रति हजार वर्गमीटर पॉलीहाउस (Polyhouse) के अंतर्गत बेमौसमी करेले की खेती से निकली औसतन 100-120 क्विंटल फल उपज को यदि रुपये 30 प्रति किलो ग्राम की दर से बेचें तो कुल औसतन मूल्य 3,00,000 से 3,60,000 रुपये लाभ प्राप्त हो जाता है। इसमें से यदि आप सामान्यतः 50 प्रतिशत के लगभग सम्पूर्ण खर्च को निकाल दें या घटा दें तो 1,50,000 से रुपये 1,80,000 तक कम से कम शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

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