हल्दी(Haldi) मसाला भी और सेहत के लिए रामबाण औषधी भी

हल्दी(Haldi) की खेती करें और मुनाफा कमाएं

हल्दी(Haldi) बहुत गुणकारी और स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है। अक्सर हल्दी से संबंधित ये सवाल पूछे जाते हैं- What are benefits of haldi । is haldi and turmeric the same thing । what is wedding haldi । what is haldi made of । नवरात्रों में हल्दी और मुरादें पूरी होने बाबत भी पूछा जाता है। A haldi appelite haldi powder haldi skincare haldi milk haldi benefits। हल्दी से क्या लाभ होता है। हल्दी कौन-कौन सी बीमारी में काम आती है। हल्दी के फायदे और नुकसान क्या हैं। हल्दी की तासीर क्या है।

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हल्दी(Haldi) के लाभ, नुकसान और उपयोग बताएं

दरअसल हल्दी को अदरक की प्रजाति का ही माना जाता है और इसके पौधे की लंबाई 5-6 फुट तक बढ़ जाती है। इसके राइजोम या प्रकन्द को हल्दी के रूप में प्रयोग किया जाता है।

हल्दी(Haldi) पीली क्यों होती है?

हल्दी का पीला रंग करक्यूमिन के कारण होता है। करक्यूमिन सूजन को कम करने वाला तथा कैंसर प्रतिरोध्क है। इसमें पाये जाने वाले टैनिन के कारण इसमें प्रतिजीवाणुक गुण पाये जाते हैं।

हल्दी(Haldi) की लाभकारी शक्ति करती है रोगों को ठीक

यह पाचन तंत्र, रत्त प्रवाह की समस्याओं, कैंसर, गठिया, जीवाणुओं का संक्रमण, उच्च रत्तचाप, कोलेस्ट्रॉल की समस्या एवं शरीर में कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत में भी लाभकारी है। यह पित्तशामक, त्वचारोग, यकृतरोग, कृमिरोग, भूख न लगना, गर्भाशयरोग, मूत्रारोग आदि में भी अति लाभकारी है।

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हल्दी(Haldi) में पाए जाने वाले तत्त्व

हल्दी(Haldi) में उड़नशील तेल 5.8%, प्रोटीन 6.3%, द्रव्य 5.1%, खनिज द्रव्य 3.5%, और कार्बाहाइड्रेट 68.4% के अतिरित्त करक्यूमिन नामक पीत रंजक द्रव्य और विटामिन पाए जाते हैं। इसकी एक किस्म काली हल्दी के रूप में भी होती है।

हल्दी(Haldi) कितने रंग की होती है

दरअसल काली और पीली दो हल्दी(Haldi) होती हैं। उपचार के लिए काली हल्दी(Haldi) ज्यादा सही रहती है।

हल्दी(Haldi) मसाला और सेहत के लिए रामबाण औषधी भी

कहने को तो हल्दी(Haldi) मसाला होती है पर सेहत के लिए यह रामबाण औषधी का भी काम करती है। शादी और सौंदर्य प्रसाधनों में भी हल्दी का उपयोग होता है। हल्दी शरीर के बाहर और भीतर दोनों तरह से उपचार करती है।

लीवर संबंधी समस्याओं में लाभकारी- लीवर की तकलीफों को हल्दी काफी हद तक ठीक कर देती है। यह रत्तफदोष दूर करती है। हल्दी नैसर्गिक तौर पर एन्जाइम्स का उत्पादन बढ़ाती है जो लीवर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं। इसी कारण लीवर से संबंधित बीमारी में हल्दी(Haldi) बड़ी उपयोगी बताई जाती है।
दाग-धब्बों को जड़ खत्म करने में हल्दी(Haldi) काफी निर्णायक भूमिका निभाती है, इसके अलावा चेहरे एवं शरीर की झाइयां भी खत्म कर देती है। हल्दी को गुणों की खान माना जाता है। हल्दी लगे न फिटकरी रंग आए चोखा जैसे मुहावरों का प्रयोग किया जाता है।

कच्ची हल्दी(Haldi) को दूध में उबालकर पीने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है। धूप में चेहरे पर लाल बर्न के निशान होने पर भी हल्दी से उन्हें ठीक किया जा सकता है। चेहरे पर जलन हो रही हो तो हल्दी को दही में मिलाकर चेहरे पर लगाने से जलन कम हो जाती है।

हल्दी(Haldi) में पाए जाने वाले करक्यूमिन नामक तत्त्व के कारण कैथेलिसाइडिन एंटी- माइक्रोबियल पेप्टाइड (सी.ए.एम.पी.) नामक प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है। सी.ए.एम.पी. प्रोटीन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। यह प्रोटीन बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में शरीर की मदद करता है।

आजकल पेट की समस्याओं से हर कोई परेशान रहता है। मसाले के रूप में प्रयोग की जाने वाली हल्दी(Haldi) का सही मात्रा में प्रयोग पेट में जलन एवं अल्सर की समस्या को दूर करने में बहुत ही लाभकारी होता है। हल्दी का पीला रंग करक्यूमिन नामक अवयव के कारण होता है और यही चिकित्सा में प्रभावी होता है। चिकित्सा क्षेत्र के अनुसार करक्यूमिन पेट की बीमारियों जैसे जलन एवं अल्सर में काफी प्रभावी रहा है। दांतों के लिए भी हल्दी(Haldi) में नमक व सरसों का तेल मिलाकर लगाने फायदा होता है। अंदरूनी चोटों से लेकर खांसी में हल्दी(Haldi) में राहत देती है और कोरोना काल में इम्यूनिटी बढ़ाने में हल्दी सबसे ज्यादा लोगों के काम आई थी।

हल्दी(Haldi) की खेती कैसे करें

दरअसल हल्दी(Haldi) की खेती औषधीय खेती में आती है और औषधीय खेती पर सरकार 50प्रतिशत अनुदान देती है।
हल्दी(Haldi) की खेती अदरक, आलू, लहसून की खेती की तरह होती है और यह जमीन के नीचे बैठती है। हल्दी मई के महीने में बोई जाती है। हल्दी की फसल 6 से 10 महीने का समय लेती है और दिसंबर से मार्च के बीच हल्दी(Haldi) की खुदाई होती है। भारत में आंध्र प्रदेश हल्दी(Haldi) सबसे ज्यादा पैदा करता है। उसके बाद उड़ीसा, तमिलनाडू, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात आदि।

हल्दी(Haldi) की किस्में- एलेप्पी और मद्रास (पेरियानदान)

2021 में 313 हजार मीट्रीक टन उत्पादन के साथ तेलंगाना पहले स्थान पर था और दूसरे पर महाराष्ट्र एवं तीसरे पर कर्नाटक था।

काली हल्दी(Haldi) वानस्पति नाम करक्यूमा केसिया और अंग्रेजी में ब्लैक जेडोरी कहा जाता है।
काली हल्दी(Haldi) की खेती के लिए अनुमानित 20 क्विंटल कंद प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है और इसकी रोपाई या बुवाई कतारों की जानी चाहिए। प्रत्येक कतार में में करीब दो फुट का अंतर होना चाहिए। एक कंद से दूसरे कंद की दूकी 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए। अगर उत्पादन की बात करें तो एक एकड़ में कच्ची हल्दी अनुमानित 60 क्विंटल के करीब हो जाती है और सूखी हल्दी 15 क्विंटल के करीब हो जाती है।

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