केरल में के.आर.जयन ने बसाया अनूठा कटहल गांव

कटहल kathal
कटहल का पेड़

कटहल की विशेषताएं

कटहल, दुनियाभर में मांसाहार का एक बेहतर विकल्प बन रहा है। शाकाहारी और वेगन लोगों की पहली पसंद कटहल भारत के साथ ही विदेशों में भी लोगों के खानपान का हिस्सा बन रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में कटहल की खेती को लेकर जागरूकता बढ़ रही है।

कटहल गाँव

ऐसे में केरल के एक युवा किसान ने अपनी मेहतन और कटहल के प्रति अपने जुनून के कारण कटहल गांव बसा दिया है। केरल के त्रिशूर जिले के इरिंजालाकुडा के रहने वाले के.आर.जयन की कटहल के प्रति ऐसी दीवानगी है कि इन्होंने कटहल की 23 दुर्लभ प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया भी है। केरल में इन्हें ‘प्लावु जयन’ यानी कटहलमैन के नाम से भी जाना जाता है। कटहल को मलयालम में ‘प्लावु’ कहते हैं। पिछले दिनों केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित किया है।

कटहल एक मिशन

के.आर. जयन कटहल को व्यवसाय नहीं, बल्कि मिशन मानते हैं। वह घर आने वालों को यह मुफ्त में देते हैं। जयन को इस बात की खुशी है कि उनके इस प्रयास को हरित क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन से सराहना मिल चुकी है। यहां तक कि केरल के स्कूलों में आठवीं कक्षा के छात्रों को उनके द्वारा लिखी गई कटहल उत्पादन के अनुभव पर आधारित पुस्तक प्लवू की मूल बातें भी पढ़ाई जाती हैं।

केरल का राजकीय फल

वर्ष 2018 में केरल सरकार ने कटहल को अपना ‘राजकीय फल’ घोषित किया था। पोषण से भरपूर कटहल को फल और सब्जी, दोनों रूप में उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही इसे प्रसंस्करित करके इससे अलग-अलग उत्पाद भी बनाए जाते हैं। केरल में आपको हर एक घर में कटहल का पेड़ दिख जाएगा। लेकिन गुणों से भरपूर इस फल के प्रति जागरूकता की कमी के कारण इसकी बहुत-सी किस्में गायब हो चुकी हैं।

के.आर.जयन k r jayan

कैसे बना कटहल जूनून

ऐसे में इन खोई हुई किस्मों को फिर से उगाने और सहेजने को लेकर के.आर. जयन जागरूकता फैला रहे हैं। पिछले कई वर्षों से कटहल की प्रजातियों को सहेज रहे जयन के अनुसार वर्ष 1995 में वह नौकरी के लिए दुबई गए। दुबई में उन्हें किसी बात की कमी
खली तो वह थी कटहल के पेड़।

वर्ष 2006 में वह अपने वतन, अपने घर लौट आए और यहां आकर उन्होंने कटहल के पेड़ लगाने शुरू कर दिए। उनकी दिलचस्पी इस पेड़ में इस कदर थी कि उन्होंने इस पर शोध करना शुरू किया। जयन बताते हैं कि कटहल की विभिन्न किस्मों की खोज में उन्होंने कई गांवों का दौरा किया और प्रत्येक गांव के कटहल के पेड़ों को समझने की कोशिश की।

कटहल एक विरासत

केरल के गांवों में आपको अलग-अलग किस्म के कटहल के पेड़ मिलेंगे। लोगों को इन किस्मों के नाम नहीं पता, उनके लिए तो कोई मोटा, कोई छोटा और कोई गोल कटहल है। लेकिन इस बात में दिलचस्पी किसी को नहीं कि अलग-अलग मृदा में कटहल की अलग-अलग किस्में होती हैं। ये सभी किस्में हमारी देसी और पारंपरिक किस्में हैं, जिन्हें सहेजना हमारी जिम्मेदारी है।


कटहल की किस्में

जयन के मुताबिक उन्होंने अब तक 20 हजार से भी ज्यादा कटहल के पेड़ लगाए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि ये पेड़ एक ही किस्म के नहीं हैं, बल्कि 44 अलग-अलग किस्मों
के हैं।

  1. रुद्राक्षी
  2. बलून वरिक्का
  3. कशुमंगा चक्का
  4. पदावालम वरिक्का
  5. वाकथानाम
  6. वरिक्का
  7. फ़ुटबाल वरिक्का

बीज से लगायें पेड़

जयन के अनुसार वह बडिंग या फिर ग्राफ्रिटंग की बजाय, बीज पर आधारित खेती करने में विश्वास रखते हैं। वह पहले मिट्टी में बीज लगाते हैं और फिर इसकी पूरी देखभाल करते हैं। लगभग 5 वर्ष में कटहल का पेड़ फल देने लगता है और इसे किसी तरह की देखरेख की आवश्यकता नहीं होती। बीज से पेड़ बनने वाले कटहल की उम्र लगभग 150 वर्ष होती है, जबकि दूसरे तरीकों से लगाए गए कटहल के वृक्ष इतना नहीं जी पाते हैं।

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