कीवी फल की वैज्ञानिक खेती
कीवी फल का वैज्ञानिक नाम एक्टीनीडिया चाईनेंसिस (Actinidia chinensis), गोल्डन कीवी है। इसे चायनीज गूजबेरी या कीवी बेरी भी कहते हैं। यह एक बहु वर्षीय वल्लरी पौधा है। जिसमें नर व मादा अलग अलग होते हैं। इसके फल सहिष्णु , गोल या बेलान्कार होते हैं, तथा हलके भूरे रेशों द्वारा ढके रहते हैं। फल का गूदा हरे रंग का तथा काले छोटे बीजों से भरा रहता है।
यह मूल रूप से चीन की फसल हैं और आज भी पूरे विश्व में कीवी फल के उत्पादन में चीन का हिस्सा 56% है। इसके अलावा न्यूजीलैंड एक ऐसा देश है जहां के फल के रूप में कीवी को विश्वभर में जाना जाता है। न्यूजीलैंड ने इसका एक बिजनेस मॉडल ही तैयार कर दिया है और पूरी दुनिया में निर्यात करता है। इतना ही नहीं दुनियाभर में यहां से वैज्ञानिक जाते हैं और वहां इसकी खेती के बारे में जानकारी देते हैं।
भारत में कीवी कैसे आया?
जैसा की आप जानते हैं कि कीवी फल को चाइनीज गूजबेरी भी कहा जाता है। देश में सबसे पहले सन 1960 में कर्णाटक राज्य के बेंगलुरु शहर में स्थित मशहूर लाल बाग में सजावटी पौधे के तौर पर कीवी को लगाया था और बेंगलुरु शहर में सर्दी न मिलने के कारण इसमें फल नहीं लगे। इसके बाद 1963 में कुछ एलिसन किस्म के नर व मादा पौधे अमेरिका से आयात किए और हिमाचल में आई.सी.ए.आर. के शिमला में फागली उपकेंद्र पर कीवी की 7 प्रजातियों को लगाया गया और फिर वहाँ से कीवी का व्यावसायिक उत्पादन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
उत्तराखंड में साल 1984-85 में भारत-इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा में इटली से आयातित कीवी की अलग-अलग प्रजातियों के 100 पौधे लगाए गए थे और इटली के वैज्ञानिकों ने इसकी देखरेख भी की थी। आजकल इस फल की खेती उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले के रामगढ़, धारी, भीमताल, ओखलकांडा, लमगड़ा, मुक्तेश्वर, नथुवाखान, तत्तापानी आदि क्षेत्रों में की जा रही है।
कीवी फल का नामकरण कैसे हुआ ?
कीवी फल को पहले चाइनीज गूज बेरी के नाम से जाना जाता था। लेकिन सन 1960 के बाद न्यूजीलैंड में इस फल का व्यवसायीकरण तेजी से होने लगा और न्यूजीलैंड के व्यापारी से चायनीज नाम से प्रोमोट नही करना चाहते थे वे इसका जुड़ाव न्यूजीलैंड से दिखा कर इसे प्रोमोट करना चाहते थे। चूंकि कीवी फल की शक्ल और आकार न्यूजीलैंड की राष्ट्रीय पक्षी कीवी के जैसा है, इसीलिए इसका नाम कीवी रखा गया है।
पोषक तत्वों की मात्रा
कीवी फल में प्रोशक तत्वों की मात्रा इस प्रकार है :
क्रमांक | समूह | तत्व | मात्रा प्रति 100 ग्राम |
प्रोक्सीमेट | |||
1. | पानी Water | 83.07 ग्राम | |
2. | ऊर्जा (एट वाटर जनरल फैक्टर) | 64 किलो कैलोरी | |
3. | ऊर्जा (एट वाटर स्पेसिफिक फैक्टर) | 58 किलो कैलोरी | |
4. | नाईट्रोजन | 0.17 ग्राम | |
5. | प्रोटीन | 1.06 ग्राम | |
6. | कुल लिपिड फैट | 0.44 ग्राम | |
7. | राख | 0.63 ग्राम | |
कार्बोहाईड्रेट | |||
1. | कार्बोहाईड्रेट अंतर से | 14 ग्राम | |
2. | कार्बोहाईड्रेट जोड़ कर | 12 ग्राम | |
3. | कुल डायटरी फाईबर | 3 ग्राम | |
4. | घुलनशील फाईबर | 0.7 ग्राम | |
5. | अघुलनशील फाईबर | 2.3 ग्राम | |
6. | शुगर्स कुल NLEA | 8.99 ग्राम | |
7. | सूक्रोज | 0.15 ग्राम | |
8. | ग्लूकोज (डेक्सट्रोज) | 4.11 ग्राम | |
9. | फ्रुक्टोज | 4.35 ग्राम | |
10. | लैक्टोज | 0.02 ग्राम | |
11. | माल्टोज | 0.19 ग्राम | |
12. | गैलक्टोज | 0.17 ग्राम | |
13. | स्टार्च | 0 ग्राम | |
मिनरल्स | |||
1. | कैल्शियम | 35 मिलीग्राम | |
2. | आयरन | 0.24 मिलीग्राम | |
3. | मैग्नीशियम | 15.7 मिलीग्राम | |
4. | फास्फोरस | 34 मिलीग्राम | |
5. | पोटाशियम | 198 मिलीग्राम | |
6. | सोडियम | 5 मिलीग्राम | |
7. | जिंक | 0.14 मिलीग्राम | |
8. | कॉपर | 0.134 मिलीग्राम | |
9. | मैग्नीशियम | 0.064 मिलीग्राम | |
10. | सेलेनियम | 0.2 µg | |
विटामिन्स एवं अन्य तत्व | |||
1. | विटामिन सी कुल एस्कॉर्बिक एसिड | 74.7 मिलीग्राम | |
2. | थायमीन | 0.027 मिलीग्राम | |
3. | राइबोफ्लेविन | 0.025 मिलीग्राम | |
4. | नायसिन | 0.37 मिलीग्राम | |
5. | पेंटोथीनिक एसिड | 0.206 मिलीग्राम | |
6. | विटामिन बी -6 | 0.061 मिलीग्राम | |
7. | फोलेट टोटल | 26 µg | |
8. | विटामिन ए | 4 µg | |
9. | विटामिन ई | 1.3 µg | |
10. | विटामिन के | 40.3 µg | |
एमिनों एसिड | |||
1. | ट्रीपटोफैन | 0.013 ग्राम | |
2. | थ्रीओनाइन | 0.043 ग्राम | |
3. | आईसोल्यूसीन | 0.046 ग्राम | |
4. | ल्युसीन | 0.05 ग्राम | |
5. | लाईसीन | 0.055 ग्राम | |
6. | मीथियोनीन | 0.022 ग्राम | |
7. | सीसटीन | 0.028 ग्राम | |
8. | फीनायलअमीन | 0.039 ग्राम | |
9. | टायरोसीन | 0.03 ग्राम | |
10. | वैलाईन | 0.052 ग्राम | |
11. | आर्जीनीन | 0.073 ग्राम | |
12. | हिस्टीडीन | 0.024 ग्राम | |
13. | अलानीन | 0.048 ग्राम | |
14. | एसपार्टिक एसिड | 0.113 ग्राम | |
15. | ग्लुटामिक एसिड | 0.165 ग्राम | |
16. | ग्लायसीन | 0.054 ग्राम | |
17. | प्रोलीन | 0.04 ग्राम | |
18. | सीरीन | 0.047 ग्राम |
जलवायु
कीवी के उत्पादन के लिए विशेष जलवायु की आवश्यकता होती है। इसे समुन्द्र तल से 200 से 2000 मीटर उंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। जहाँ जाड़े का तापमान 200 से 300 घंटे 7 डिग्री सेंटीग्रेड से कम आ जाता है। यह एक पतझड़ वाला वल्लरी पौधा है। जो सुशुप्त अवस्था में शून्य से नीचे का तापमान सहन कर लेता है। जो क्षेत्र सेब के उत्पादन के लिए गर्म तथा नींबू, आम प्रजाति के लिए ठंडे हैं, वहां पर इसकी बागवानी की जा सकती है।
40 वर्षों तक फल देता है कीवी
डॉ यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी नौणी के फल विज्ञान विभाग के प्रधान वैज्ञानिक व कीवी पर दो दशकों से कार्य कर रहे डॉ विशाल राणा जी बताते हैं कि कीवी फल मध्यपर्वतीय क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त है। इसे एक बार लगाने से 40 साल से अधिक समय तक फल लिया जा सकता है। नौणी यूनिवर्सिटी में ही 35 साल पुराना कीवी का बगीचा है, जो अच्छी पैदावार दे रहा है। इसमें हर साल एक बराबर फसल आती है।
कीवी की मुख्य प्रजातियाँ
एबोट
यह एक अगेती किस्म है इसके फल माध्यम आकार के तथा इनका औसत वजन 40 से 50 ग्राम होता है।
एलीसन
इसके फल पतले व् लम्बे होते हैं जिनमें खट्टापन थोड़ा ज्यादा होता है। यह किस्म हैवार्ड किस्म से कोई 8 से 10 दिन पहले पक कर तैयार हो जाती है।
ब्रूनो
इसके फल का आकार माध्यम एवं रंग भूरा होता है। फलों में अम्लता कम होती है तथा इस प्राजाति को अपेक्षाकृत कम तापमान की आवश्यकता होती है।
हैवार्ड
इसके फल ज्यादा आकर्षक दीखते हैं तथा इन्हें ज्यादा समय तक रखा जा सकता है। इसमें घुमेंशील शर्करा 14% तक होती है, जो एनी प्रजातियों मेसे काफी अधिक है। कम तापमान वाले ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र इसके लिए अधिक उपयुक्त होते हैं। इस प्रजाति के 5 से 7 वर्ष के पौधों से 50 से 55 किलोग्राम फल प्राप्त होते हैं।
मोंटी
यह प्रजाति देर से फूलती है, परन्तु पकने में समय कम लगता है। इसके गल माध्यम आकार तथा वजन लगभग 40 से 45 ग्राम होता है। इस फल में कुल घुलनशील शर्करा 12 से 12.5 % तथा अम्लता ज्यादा होती है।
तोमुरी
यह एक नर कीवी की प्रजाति है जिसे परागण हेतु किसी भी मादा किस्म के साथ रोपित किया जाता है इसके पुष्प गुच्छेदार व आकर्षक दिखाई देते हैं।
रेड कीवी (Actinidia melanandra)
इस प्राजाति के फलों का रंग लाल होता है,तथा फलों के ऊपर रोम नहीं पाए जाते हैं। इसमें भी नर और मादा प्रजाति के अलग अलग पौधे होते हैं।
भूमि का चयन
इस फल के लिए गहरी दोमट मिटटी, जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो तथा पी.एच. मान 7.3 से कम हो, उपयुक्त होती है। कीवी फल के पौधे ज्यादा लवण युक्त भूमि के प्रति सहनशील होते हैं।
पौध प्रसारण कैसे किया जाए
कीवी फल के पौधों का प्रसारण कटिंग,ग्राफ्टिंग एवं लेयरिंग द्वारा किया जता है। इन विधियों का विवरण आगे विस्तार से दिया जा रहा है।
कटिंग द्वारा
कीवी की एक साल पुरानी शाखाओं से कलम (कटिंग) काटकर, (जो 15 से 20 सेंटी मीटर लम्बी व् 3 से 5 कली युक्त हो ), इसे 1,000 पी.पी.एम., आई.बी.ए.(इण्डोल ब्यूटायरिक एसिड) नाम हारमोन से उपचारित कर जनवरी माह में क्यारी में लगाया जाता है। इस प्रकार तैयार पौधों का रोपण अगले वर्ष किया जाता है।
रूट स्टॉक की तैयारी
कीवी के बीजों को 30 पी. पी. एम. जी. ए. 3 (जिब्रेलिक एसिड -3) हारमोन के घोल में 24 घंटे भिगो कर नर्सरी में बोते हैं तो अंकुरण अच्छा मिलता है तथा रूट स्टॉक अच्छे और स्वस्थ मिलते हैं।
ग्राफ्टिंग द्वारा
इस विधि द्वारा एक साल पुराने बीजू पौधे की शाखा को मार्च में जमीन से 15 से 20 सेंटीमीटर ऊपर काट कर पेन्सिल के अकार की पतली कटिंग को टंग एवं स्लाइस विधि (क्लेफट ग्राफ्टिंग ) के द्वारा ग्राफ्टिंग किया जाता है जिसमें पौधों की सफलता ज्यादा प्राप्त होती है।
पौध रोपण
कीवी के पौधों का रोपण शीत ऋतू (जनवरी माह) में किया जाता है। इसके लिए 5.0 X 5.0 मीटर की दूरी का स्थान सुनिश्चित कर 1.0X 1.0X1.0 मीटर अकार का गड्ढा तैयार कर उसमें एक तिहाई भाग गोबर की सड़ी खाद से भर देना चाहिए। अब इसे मिश्रित कर पौधों की रोपाई करें और पानी डाल दें कीवी बागवानी का रोपण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इसमें नर व् मादा पौधे अलग अलग होते हैं, जिसमें मादा पौधे से फल प्राप्त होते हैं। अच्छे परागण प्रबंधन के लिए 5 मादा पौधे के साथ एक नर पौधे का रोपण करना चाहिए सामान्य परिस्थितयों में एक नाली (200 वर्ग मीटर ) में 8 पौधों के साथ एक नर पौधे का रोपण किया जा सकता है।
खाद व उर्वरक
कीवी के पौधे में प्रारंभ में 2 से 3 वर्षों तक 30 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद तथा 0.5 किलोग्राम एन.पी.के. मिश्रण (120:60:60 अनुपात में ) प्रति पौधा देना चाहिए पौधे के बढ़ने के साथ खाद की मात्रा भी बढ़ती जाती है। प्रतिवर्ष 15 प्रतिशत की दर से नाईट्रोजन युक्त उर्वरक प्रति पौधा बढाते रहना चाहिए 8 से 10 वर्ष पश्चात पूर्ण विकसित पौधों में 50 से 60 किलोग्राम गोबर की खाद एवं 700 ग्राम नाईट्रोजन, 400 ग्राम फास्फोरस एवं 700 ग्राम पोटाशियम देना चाहिए।
पौधे की ट्रेनिंग
इसकी बेल अंगूर के पौधे के समान होती है। जिन्हें जमीन से ऊपर रोकने के लिए मजबूत ढाँचे की आवश्यकता होती है। यह मजबूत ढांचा लोहे के खम्बों एवं तारों से टी बार एवं पर्गोला विधि के अनुसार तैयार किया जाता है।
टी बार विधि
इस विधि में पहले वर्ष पौधे की एक शाखा को तार तक बढ़ने की अनुमति देते हैं, यही इसकी मुख्य शाखा होती है। दूसरे वर्ष दो शाखाओं का चयन कर दोनों तरफ बीच वाले तार में बाँध दिया जाता है, और यह उसकी दूसरी मुख्य शाखा होती है। तीसरे वर्ष, तीसरी शाखाओं का चुनाव दूसरी मुख्य शाखा से करते हैं और तीसरी शाखा बाहर वाली तार पर बाँध देते हैं। जो कि अगले वर्ष फल देती है।
पुष्पन फलन व उपज
कीवी में 3 से 4 वर्षों में फूल व फल आना प्रारंभ होता है। इसके पौधे में परागण वायवीय व मधुमखियों द्वारा होता है। अत: कीटनाशक दवाओं का प्रयोग फूल आने के समय नही करना चाहिए पूर्ण विकसित पौधे (5 से 7 वर्षों) से 50 से 60 किलोग्राम फल प्रति पौधा (20 से 25 टन है) प्राप्त किया जा सकता है। इस फल की तुड़ाई अक्टूबर से दिसम्बर माह तक की जा सकती है। उत्तराखंड की भौगोलिक दशा में कीवी के पौधों पर अभी तक किसी प्रकार का रोग व कीड़े का प्रकोप नही देखा गया है। जी.ए.-3 का 200 पी.पी.एम. व एन.एन.ए.200 पी.पी.एम. के घोल का फल लगने के बाद 15 दिन में अंतराल पर (छ: बार) फलों को डुबायें, तो फलों के आकार में अपेक्षित वृद्धि मिलती है। फल बड़े होते हैं इसीलिए बाजार में इनकी अच्छी कीमत मिलती है।
विपणन प्रबंधन
कीवी फल के शीघ्र खराब न होने के कारण इसका विपणन प्रबंधन यानि मार्केटिंग मैनेजमेंट बहुत आसान है। ठोस अवस्था में फल पकने से पूर्व इसे तोड़ लिया जता है, तोड़ने के पश्चात आकर्षक दिखने के लिए इसके रोम को हटाकर पॉलिथीन में रख दिया जाता है। खाने योग्य मुलायम अवस्था में आने में सामान्य तापक्रम पर इसे लगभग दो सप्ताह का समय लगता है। यह दो सप्ताह विपणन प्रबंधन में प्रयुक्त किया जा सकता है।
इस प्रकार यह फल अपनी सहिष्णुता, व्यापकता ,जयदा उत्पादन विशेष एवं पोषक गुणों के कारण उत्तराखंड के किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में अपनी बहुमूल्य भागीदारी निभा सकता है।
कीवी फल के उपयोग एवं स्वास्थ्य लाभ
अच्छी नींद के लिए
कीवी फल में सेरोटेनिंन नमक पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है जो अच्छी नींद लाने में सहायक होता है। इसके साथ साथ प्राकृतिक एंजाइमों और एंटीऑक्सीडेंट भी भरपूर मात्रा में होते हैं, जो मेटाबोलिज्म प्रक्रियाओं को पूरा करने में सहयोग करते हैं। अनिद्रा से पीड़ित मरीजों को डॉक्टर कीवी फल खाने की सलाह देते हैं। नींद अच्छी आने से डिप्रेशन के रोगियों को भी बहुत लाभ मिलता है।
वजन कम करने में सहायक
कीवी फल में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होते है, जो शरीर में वसा की मात्रा को बढ़ने नहीं देते है। जिन व्यक्तियों को अपना वजन कम करना है तो उन्हें कीवी फल का सेवन रोजाना करना चाहिए।इससे उन्हें लाभ मिलता है।
ब्लड प्रेशर के नियंत्रण के लिए
कीवी फल में अनेक प्रकार के विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट तत्व मौजूद होते हैं जो ब्लड प्रेशर यानि रक्त चाप को नियंत्रण करने में सहायता करते है। कीवी फल में खून को पतला करने वाले तत्व भी मौजूद होते हैं जो खून को पतला करके उसके बहाव को आसान बनाते हैं। कीवी फल में एंटीथ्रोम्बोटिक (antithrombotic खून का थक्का न जमने देना) वाले गुण भी मौजूद हैं इसीलिए रक्त चाप से पीड़ित मरीजों को अपने भोजन में कीवी फल का सेवन करना चाहिए।
इम्म्युनिटी यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए
कीवी फल के अंदर मिलने वाले प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंटस भोजन के माध्यम से शरीर में घुलने वाले फ्री रेडिकल्स को समाप्त करके शरीर को बेहतरीन इम्म्युनिटी प्रदान करते हैं। बीमार लोगों को कीवी फल खाने से रोगों से लड़ने की ताकत प्राप्त होती है।
आंखो की रौशनी के लिए
कीवी फल खाने से आँखों की रौशनी बढाने में भी लाभ होता है। कीवी फल का भोजन में लम्बे समय तक प्रयोग करने वाले लोगों की आंखों रौशनी भी बनी रहती है।
डेंगू व कैंसर के लिए भी लाभकारी कीवी
कीवी फल डेंगू , कैंसर के रोगियों, हार्ट के रोगियों के लिए काफी मुफीद साबित होता है। इससे ब्लड प्लेटलेट्स बनते हैं। यह खून को पतला करने में सहायक होता है जिससे मरीजों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। कीवी फल में मौजूद एंटीआक्सीडेंटस कैंसर कोशिकाओं के फैलाव को रोकने में सहायक होते है।
कीवी फल खाने के नुक्सान
एलर्जी
यदि आपको किसी प्रकार की भी एलर्जी है तो आपको कीवी खाने से परहेज करना चाहिए। अनुसंधान से ऐसा पता चला है कि कुछ लोगों को नाक बंद व स्किन पर रैश्ज की समस्या हो सकती है। यह समस्या छोटे बच्चों में ज्यादा आ सकती है।
गुर्दा रोग की समस्या
अनुसंधान से पता चला है कि कीवी फल में पोटाशियम तत्व की अच्छी खासी मात्रा पायी जाती है जो गुर्दा रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए समस्या बन सकती है।
पेट फूलना एवं अफारा होना
अनुसंधान से पता चला है कि कीवी फल में फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है जिससे कब्ज की समस्या भी हो सकती है इसीलिए इस फल को सीमित मात्रा में खाने की सलाह दी जाती है।
वजन बढना एवं मोटापा रोग
अनुसंधान से पता चला है कि कीवी फल के अत्याधिक सेवन से वजन बढ़ सकता है और मोटापा रोग से पीड़ित व्यक्तियों को कीवी का सेवन बड़े ही अनुशासन से करना चाहिए।
कीवी स्टेट नागालैंड
पिछले कुछ वर्षों में नागालैंड राज्य में कीवी उत्पादन के बेहतरीन प्रयास हुए हैं और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हाल ही में कहा था कि कीवी जैसे विदेश फल का उत्पादन करने में नागालैंड और उत्तर पूर्वी राज्य बेहतर भूमिका अदा कर रहे हैं। इससे किसानों की आय भी बढ़ी है और राज्य की अर्थ व्यवस्था भी मजबूत हुई है। नागालैंड को कीवी स्टेट का दर्जा मिले इस दिशा में कार्य करना चाहिए। नागालैंड में कीवी फल पर फोकस करके एक फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी बनाने का प्रयास चल रहा है। नागालैंड के कृषक एक हेक्टेयर क्षेत्र में अनुमानित 24 लाख रुपये की आमदनी कर पा रहे हैं।
रोग और रोकथाम
कीवी की बागवानी में जड़ गलन, कालर रॉट, क्राउन रॉट आदि रोग होते हैं। मिट्टी में फफूंद लगने की वजह ये रोग से होते हैं। इन रोगों के बरसात और गर्मियों के मौसम में ज्यादा फैलने की संभावना रहती है। इनकी वजह से पत्तियां मुरझाकर आकार में छोटी होने लगती है। टहनियां सूख जाती और जड़े गलकर पौध खराब हो जाती है।
क्या करें?
कीवी की पौध को फफूंद से बचाने के लिए सबसे कारगर उपाय यही है कि जड़ों में पानी नहीं भरा रहना चाहिए यानी जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
बैक्टीरियल लीफ स्पॉट
कीवी के पौधों में ये रोग बसंत ऋतु के अंत में होता है। इससे पत्तियां प्रभावित होती है जिसकी वजह से पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे पडऩे लगते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए जीवाणुनाशक का छिडक़ाव कली खिलने से पहले करना चाहिए।
कहाँ से लें पौध और जानकारी
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड
74/बी फेज 2 , पंडितवारी, राजपुर रोड, देहरादून
फोन नंबर- 0135-2774272
कीवी के उत्पाद कहाँ से खरीदें
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कीवी की खेती करने वाले किसान के अनुभव
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के सामा गाँव में रहने वाले 72 वर्षीय भवान सिंह आजकल कीवी के जानमाने किसान हैं। भवान सिंह किसान बनने से पूर्व सरकारी स्कूल में हेड मास्टर थे। साल 2009 में अपने पद से रिटायर होने के बाद भवान सिंह जी ने कीवी की खेती (Kiwi Farming) करने की शुरूवात की। भवान सिंह बताते है कि साल 2004-05 के दौरान मैं उत्तराखंड के कुछ किसानों के साथ हिमाचल प्रदेश गया था। जहां मुझे पहली बार कीवी की खेती (kiwi farming) के बारे में पता चला और मैं वहां से कीवी के चार पौधे भी साथ लाया ये पौधों महज तीन-चार साल में ही तैयार हो गए और इनपर फल आने लगे इससे मेरा बहुत उत्साहवर्धन हुआ और मैंने निश्चय कर लिया कि रिटायरमेंट के बाद मैं कीवी की खेती बड़े स्तर पर करूंगा।
स्ट्रेटेजी
साल 2009 में मैंने लगभग 100 पौधे लगाये क्यूंकि मैं कोई बड़ा रिस्क नही लेना चाहता था और मैंने समय के साथ साथ डेढ़ हेक्टेयर में धीरे धीरे क्रमवार 600 कीवी के पौधे लगाए जिसमें लगभग 350 पौधे आज पूरी तरह से तैयार हैं। इन पौधों में फल आते हैं मैंने सभी पौधे एकसाथ नही लगाये हैं अपितु धीरे-धीरे लगाते हुए आज इन पौधों की संख्या 600 पहुंची है।
भवान सिंह अपना अनुभव शेयर करते हुए बताते हैं कि कीवी के पौधें जब ऊपर बढ़ते हैं तो उन्हें सहारे की जरूरत होती है। इसलिए हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कीवी की खेती में एक बार निवेश करना पड़ता है। जबकि आने वाले चार-पाँच सालों में ही इसमें फल आने लगते हैं और मुनाफा भी अच्छा होता है। एक कीवी के पेड़ से औसतन 40 से 50 किलो कीवी फल मिलते हैं। यदि अगर इसकी बेहतर तरीके से देखभाल की जाए तो ये और भी अधिक फल दे सकता है।
तकनीकी पहलू
तकनीकी दृष्टि से काफी अनुभव ले चुके भवान सिंह बताते हैं कि कीवी की खेती में पोलीनेशन यानी परागण की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यानि कि अगर प्राकृतिक तरीके से मादा फूलों पर नर फूलों के परागकण नहीं पहुच पाते हैं तो यह काम हमें खुद करना होता है ऐसा करने से उपज बेहतर होती है।
ग्रेडिंग, मार्केटिंग और कमाई
बाजार में कीवी के फलों की ब्रिकी आकार के हिसाब से की जाती है। बड़े साइज़ वाले कीवी फल लगभग 150 रुपए प्रति किलो और छोटे आकार के कीवी फल 100 रुपए प्रति किलो तक बिक जाते हैं। इसके अलावा जो सबसे छोटे आकार के कीवी फल होते हैं, उन्हें प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में इस्तेमाल किया जाता है। यह फल औसतन 40-50 रुपए प्रतिकिलो में बिक जाते हैं। भवान सिंह बताते हैं कि कीवी की खेती से वे सालाना 100 से 115 क्विटंल तक की उपज ले रहे हैं और एक मोटे हिसाब से उन्हें लगभग 10 लाख तक की कमाई हो रही है।
कीवी नर्सरी का बिजनेस
भवान सिंह जी की सफलता से पूरे इलाके में एक उत्साह की लहर है और काफी सारे किसान कीवी के बारे में पूछताछ करने के लिए उनके बगीचे में आते हैं अब पौधों की मांग बढ़ गई है और जिसके चलते मैंने नर्सरी भी तैयार करनी शुरू कर दी है।
महत्वपूर्ण रेफरेंस
- विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान प्रसार प्रपत्र 24/2005, डॉ. एस.के.वर्मा , श्री राम रतन आर्य (रा.पा.अ.स.ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र भवाली), डॉ ए.के.श्रीवास्तव, श्री पंकज नौटियाल एवं डॉ.विजय अविनाशीलिंगम
- Kiwi fruit is a significant allergen and is associated with differing patterns of reactivity in children and adults. J S A Lucas, K E C Grimshaw, K Collins, J O Warner, J O’B Hourihane
- Eating & Nutrition for Hemodialysis
- KIWI VALUE CHAIN ANALYSIS AND MARKET ASSESSMENT FOR LOWER SUBANSIRI DISTRICT ARUNACHAL PRADESH
- Study on Capital Investment and Marketing of Kiwi Fruit in Ilam, Nepal
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