आइये जानते हैं लक्षण क्या है पशुओं में फैली इस लंपी (Lumpy Skin Disease) से बचाव एवं उपचार के
प्राथमिक लक्षण त्वचा पर चेचक, तेज बुखार और नाक बहना है। इसके अलावा शरीर पर मोटी-मोटी गांठे हो जाना। तेज बुखार के बाद शारीरिक क्षमता कमजोर होने लगती है और पशुओं के शरीर पर चेचक की चित्ते उभरने लगते हैं। इसके बाद पशु को चारा खाने में परेशानी होने लगती है और पशु में कमजोरी आने के कारण दूध कम या बिल्कुल बंद हो जाता है।
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लंपी वायरस से पशुओं का बचाव कैसे करें Symptoms, Precautions and Treatment of Lumpy Skin Disease
लंपी वायरस मूलतः मच्छर, मक्खियों द्वारा एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है। इसीलिए बीमार पशुओं से स्वस्थ पशुओं को दूर रखने की सलाह दी जाती है। पशुओं के बाड़े में मक्खी एवं मच्छरों को भगाने के लिए साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए और नीम के पत्तों का धुआं करते रहना चाहिए एवं फिनाइल व साइपरमेथरिन का स्प्रे करना चाहिए।
अधिकारियों का कहना है कि गांठदार चर्म रोग वायरस (एलएसडीवी) या लंपी रोग नामक यह संक्रामक रोग इस साल अप्रैल में पाकिस्तान के रास्ते भारत आया। पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अफ्रीका में पैदा हुई यह बीमारी अप्रैल में पाकिस्तान के रास्ते भारत आयी थी। यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, भूटान, नेपाल और भारत में अलग-अलग समय में इसके मामले पाए गए हैं।
संक्रामक बीमारी
कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली गायों में संक्रमण तेजी से फैल रहा है। क्योंकि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण अन्य रोग आक्रमण करते हैं। लंपी स्किन बीमारी एक वायरल रोग है. यह वायरस पॉक्स परिवार का है। यह बीमारी जो मच्छर, मक्खी, जूं इत्यादि के काटने या सीधा संपर्क में आने अथवा दूषित खाने या पानी से फैलती है। इससे पशुओं में तमाम लक्षणों के साथ उनकी मौत भी हो सकती है। लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है और अधिकांश अफ्रीकी देशों में है। माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत 1929 में जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। 2012 के बाद से यह तेजी से फैल रही है, हालांकि हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) में पाए गए हैं।
पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता यह रोग
पशुपालन मंत्री ने बताया कि यह रोग गैर-जूनोटिक है यानी कि यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता। इसलिए जानवरों की देखभाल करने वाले पशुपालकों के लिए डरने की कोई बात नहीं है। पंरतु पशुपालकों को कुछ सावधानियों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए, संक्रमित पशुओं या स्वस्थ पशुओं का दूध इन दिनों बिना गर्म इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। दूसरी सावधानी यह रखनी चाहिए कि बीमारी का संक्रमण अधिक न हो, इसके लिए पशुओं का आवागमन यानी खरीद-फरोख्त के अलावा चराने के लिए दूसरे क्षेत्रों में ले जाने से बचना चाहिए तथा पीड़ित पशुओं को अलग बांधकर रखना चाहिए।
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लंपी वायरस से बचाव का एंटी-सिरम ही है सबसे कारगर तरीका
दुनिया में मंकीपॉक्स के बाद अब यह दुर्लभ संक्रमण पशुपालकों एवं खासकर गायपालकों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए पशुओं को टीका लगाया जा रहा है। वहीं रोग से बचने के लिए एंटीबायोटिक्स, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटीहिस्टामिनिक दवाएं दी जाती हैं। डॉ. बलबीर सिंह जी के अनुसार-“पशुपालन विभाग तथा नीति निर्धारण करने वाले वरिष्ठ अधिकारी एवं वैज्ञानिकों के बीच में सही तालमेल (तारतम्य) नहीं होने के कारण यह भयंकर त्रासदी हुई है। एलएसडी से आक्रांत पशु के प्रबंधन हेतु एंटी-सीरम का प्रयोग होना चाहिए था। इस पर अभी तक कोई काम नहीं हो रहा है। केवल सिंप्टोमेटिक ट्रीटमेंट की बात कर रहे हैं जोकि बिल्कुल गलत है। वैज्ञानिक अवधारणा के आधार पर उपचार होना चाहिए तथा नवाचार (नई तकनीक) करके महत्वपूर्ण पशुधन का संरक्षण संभव हो सकता है।”
एंटी सीरम हो सकता है स्थानीय स्तर पर तैयार
लंपी वायरस जब पशुओं में शुरूआती दौर में आता है। उसके उपचार के लिए जो पशु ठीक हो गया, उसके 5ml खून में 2ml एंटीबाइटिक मिलाकर रख दीजिए। करीब 5 मिनट बाद इस प्रक्रिया में सीरम अलग हो जाएगा और इसी एंटी सीरम से संक्रमित पशु को टीका लगाकर इलाज करना बिल्कुल आसान है। इस पूरी प्रक्रिया को एपराइजेशन कहते हैं, जिसमें मिश्रण के अवयवों को अलग किया जाता है। पुराने समय में जब विज्ञान और तकनीक विकसित नहीं हुई थी, तब पशुपालक ठीक हो चुके पशुओं की लार को संक्रमित पशुओं के मुंह में लगाकर इलाज करते थे।
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लंपी वायरस को लेकर लापरवाहियां
सरकार का आदेश है कि 5 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में वैक्सीनेशन नहीं करना है। सरकार को अपने इस फैसले पर पुर्नविचार करना चाहिए। दूसरा सरकार को समय रहते इसे एपिडेमिक घोषित कर देना चाहिए था। दरअसल जब कोई गंभीर बीमारी एक निश्चित एरिया तक ही फैले तो उस बीमारी को एपिडेमिक कहते हैं। इसी से मिलते-जुलते दो शब्द और हैं- पैनडेमिक व एंडेमिक। पैनडेमिक का मतलब है किसी भी बीमारी से ऐसी तबाही जो दुनिया के अलग-अलग देशों को अपनी चपेट में ले ले। कोई भी महामारी उस समय एंडेमिक की हालत में पहुंच जाती है, जब उसके पूरी तरह खत्म होने की संभावना नहीं रहती।
लंपी वायरस की वैक्सीन
NRC (हिसार) में डॉ. नवीन शर्मा और उनके सहयोगियों ने 4 महीने पहले तैयार लंपी वायरस की वैक्सीन तैयार कर ली थी। उस वैक्सीन का पेटेंट भी हो गया था। परंतु सरकारी दफ्तरों में परमिशन के लिए फाइल अटकी पड़ी रही। जब हरियाणा, राजस्थान और गुजरात आदि राज्यों में गौधन बहुत बड़ी संख्या में मर रहा था, तब आनन-फानन में उसे परमिशन दी गई। अगर समय से इसे परमिशन मिल गई होती तो गौधन को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती। वहीं ये वैक्सीन अगर किसी व्यापारी के पास होती तो परमिशन के लिए इतने दिन नहीं अटकती और व्यापारी इस आपात स्थिति में गौधन को भी बचा लेता व पैसा भी कमा लेता।
हरियाणा के पशुपालन विभाग द्वारा बकरियों के लिए तैयार की गई वैक्सीन गाय एंव भैंसों को लगाई जा रही हैं, जोकि लंपी वायरस को रोकने में पूरी तरह असफल हैं। क्योंकि लंपी वायरस अभी तक बकरियों में नहीं आया है। इसलिए बकरियों वाला एंटी-सिरम यहां काम नहीं करेगा। लंपी वायरस अब धीरे-धीरे भैंसों और ऊंटों को भी अपनी गिरफ्त में ले रहा है। ऐसे में सभी सावधानियों के साथ एंटी-सिरम व देशी उपचार पशुपालक इस्तेमाल कर रहे हैं।
राजस्थान में लंपी डिजीज का कहर
राजस्थान में लम्पी डिजीज बेजुबानों पर कहर बनकर टूटा है। प्रदेश में एक के बाद एक जिलों में गायों की मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। बीमारी से हजारों गायों की जान जाने से पशुपालकों में तनाव एवं डर का माहौल है। पशुपालन विभाग बेजुबानों के दर्द को कम करने की बजाय मौत के आंकड़े छिपाने में लग रहा है। जयपुर, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, पाली, सिरोही, बीकानेर, चुरू, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर सहित कई जिलों में लम्पी स्किन डिजीज़ के हालात बेकाबू हो रहे हैं।
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संक्रमण रोकने की गाइडलाइन
एक खुराक के लिए एक मुट्ठी तुलसी के पत्ते, 5-5 ग्राम दाल चीनी व सोंठ के पाउडर, 10 काली मिर्च तथा गुड़ मिलाकर तैयार कर पशुओं को सुबह शाम खिलाएं। संक्रमण होने पर पान के पत्ते, काली मिर्च, नमक के 10 नग को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर एक खुराक बनाकर रोजाना 3 घंटे के अंतराल पर देनी है। पशुबाड़े में गोबर के छाणे, कंडे जलाकर उसमें गुगल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते, लोबान को डालकर धुंआ करें। पशुओं के स्नान के लिए 25 ली. पानी में एक मुट्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट ब एवं 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर प्रयोग करना। इस घोल से स्नान के 5 मिनट बाद सादे पानी का इस्तेमाल करना।
पारंपरिक पद्धति से लंपी डिजीज का इलाज
खिलाये जाने का मिश्रण कैसे तैयार करें
सामग्री (एक खुराक के लिए) – पान का पत्ता 10 + काली मिर्च 10 ग्राम + गुड आवश्यकतानुसार। नमक 10 ग्राम,
तैयार करने की विधि-सभी सामग्रियों को पीसकर पेस्ट बना लें और गुड़ मिला दें, इस मिश्रण को अपने पशु को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खिलाएं। पहले दिन में इसकी एक खुराक हर 3 घंटे में पशु को खिलाएं, दूसरे दिन से पशु को दिन भर में तीन खुराक दें, प्रत्येक खुराक ताजा तैयार करें।
घाव पर लगाए जाने वाला मिश्रण (यदि घाव हो तो)
सामग्री: कुप्पी का पत्ता 1 मुट्ठी+लहसुन 10 कलियाँ+ नीम का पत्ता 1 मुट्ठी + हल्दी 20 ग्राम मेथी का पत्ता 1 मुट्टी + तुलसी का पत्ता 1 मुट्ठी + मेहन्दी का पत्ता 1 मुट्ठी, नारियल या तिल का तेल 500ml
तैयार करने की विधि-सभी सामग्रियों को पीसकर पेस्ट बना लें, तत्पश्चात 500 ml नारियल अथवा तिल का तेल मिलाकर उबालें और ठंडा कर ले, घाव को अच्छी तरह साफ करने के बाद इस मिश्रण को सीधे घाव पर लगाएं। यदि पाव में को दिखाई दें तो पहले दिन नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाएँ।
राजेंद्र बिश्नोई द्वारा इस्तेमाल की गई विधि
काला जीरी, हल्दी, आँवला और सनायपत्ति ये चारों जड़ी बूटियाँ 200-200 ग्राम लेकर बरीख पीसकर मिला ले। 50 ग्राम सुबह और 50 ग्राम शाम को गाय के देसी घी या गुड में मिलकर खिलाए । ज्यादा समस्या हो तो दिन में 3 बार भी खिला सकते हैं
राजेंद्र बिश्नोई जी ने फेसबुक पर यह विधि शेयर करते हुए लिखा है कि “यह फार्मूला बहुत इफेक्टिव है हमारे गोलूवाला में हजारों गायों को इस फार्मूले से बचाया गया है किसी भाई को और जानकारी हो तो वह मेरे को फोन भी कर सकता है यह फार्मूला यूज़ करें और यह पेड़े 6 दिन तक देने होते हैं बनाकर सुबह-शाम और चूर्ण एक चम्मच पेड़ों के अंदर मिला लीजिए जैसे दी गाय को दे दीजिए।”
हरी मीणा (राजस्थान) ने फेसबुक पर लिखा है कि- “लंपी स्कीन रोग ( लंपी वायरस) के कारण गायों में फैल रही बिमारी के उपचार हेतु आज ग्राम पंचायत सूरतपुरा मे आवारा गाय एवम् सांडो के इंजेक्शन व गोली देकर उपचार करते हुए । ग्राम पंचायत सूरतपुरा स्तर पर गौ सेवको की टीम बनाई गई हैं। कोई भी भाई इस माहामारी में गौ सेवा हेतु गौ सेवक टीम से जुड़ सकते हैं। सूरतपुरा, श्यामपुरा के आस पास कोई भी आवारा गौ वंश में लंपी वायरस के लक्षण दिखाई दे तो तुरंत हमसे संपर्क करें । ग्राम पंचायत सूरतपुरा ग्राम पंचायत सूरतपुरा
हरि सिंह मीना सरपंच प्रतिनिधि 9587377707 श्री रामकेश सैनी, वार्ड मेंबर- 8890532443
रवि जी ने लंपी बीमारी से ग्रसित अपनी गाय के उपचार को लेकर विचार सांझा करते हुए लिखा है- Facebook Story URL
मित्रों एक अनुभव साझा करने के लिए पोस्ट लिख रहा हूं, क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि इस समय जरूरत भी है।
5 दिन पहले हमारी गाय को लंपी स्किन डिजीज वायरस ने घेर लिया, जैसे ही प्रारंभिक लक्षण दिखाई दिए तुरंत पशु चिकित्सक को बुलाया गया 2 इंजेक्शन लगाते हुए बोला कि गाय के बच्चे को खतरा है। यह दवाई लिख रहा हूं, चार गोली सुबह और चार गोली शाम को खिला देना।
अब हुआ क्या दो डोज देने के बाद पाचन खराब हो गया गोबर में बहुत ज्यादा बदबू, म्यूकस और रक्त आने लगा था। मैं यह नहीं कह रहा कि इस दवाई से यह इंफेक्शन हुआ है।
फिर मैंने इन चिकित्सक को फोन मिलाया और बताया कि श्रीमान जी अब यह समस्या आ गई तो उन्होंने कहा कि अपने आप ठीक हो जाएगी।
अपने आप तो फिर बीमारी भी ठीक हो जाती इंजेक्शन लगाने की और चार-चार गोली सुबह-शाम खिलाने की क्या जरूरत थी… खैर।
फिर दूसरे चिकित्सक से बात की उन्होंने दवाई बताई पेट के इंफेक्शन के लिए उससे भी कुछ सुधार नहीं हुआ। वैसे हमने पहले कभी इस गाय को कोई दवाई खिलाई ही नही, जरूरत ही नहीं पड़ी कभी।
अब मैंने देख लिया कि ऐसे समय खराब करने में कोई फायदा नहीं 2 दिन हो गए समस्या बढ़ती ही जा रही है, वो क्या है ना कि आपको चाहे कुछ भी पता हो, आपने कहीं से कितनी भी जानकारी इकट्ठी की हो, आपकी समझ कुछ भी हो घर वालों के लिए आप बच्चे ही रहते हैं। हमारे घर तो ऐसा ही है, आपका पता नहीं।
अब हमने आयुर्वेद की एक दिव्य औषधि इस बीमारी के लिए जिसका नाम है ‘पित्त पापड़ा’/Fumaria parviflora को चुना, इस सीजन में ताजा तो मिल नहीं सकता, क्योंकि सर्दियों में होता है गेहूं के खेत में, तो पंसारी से एक किलोग्राम ले आया, 100 ग्राम लिया और आधा लीटर पानी में चाय की तरह उबाला फिर छानकर ठंडा करके थोड़ी सी खांड मिलाकर सुबह-शाम पिला दिया, अपने आप पिया खुश होकर।
सबसे बड़ी बात तत्काल लाभ करता है और किसी जड़ी बूटी का कॉन्बिनेशन इसके साथ नहीं करना पड़ा, केवल अकेला पित्त पापड़ा ही खेल खेल गया। इसके बाद गाय अच्छे से घास खाने लग गई व पानी पीने लग गई।
और पेट के इंफेक्शन को ठीक करने के लिए आयुर्वेदिक औषधि कुटजारिष्ट 30ml बराबर पानी मिलाकर तीन समय पिलाई गई इंस्टेंट पॉजिटिव रिजल्ट मिला।
गांठों पर लगाने के लिए एक पेस्ट तैयार किया गया हल्दी, एलोवेरा और सरसों का तेल बराबर मात्रा में लेकर, 4-5 मिनट धीमी आंच पर पका कर।
मैंने घरवालों से कहा कि घबराना नहीं गाय ठीक हो जाएगी, बस केयर ऐसे करनी है जैसे बीमार होने पर मनुष्य की करते हैं।
अब गाय का स्वास्थ्य अच्छा है ।
नोट:- हमने केवल अपना अनुभव लिखा है, आप अपने पशुओं की चिकित्सा किसी अच्छे चिकित्सक से ही करवाएं।