पाम ऑयल Palm Oil ने लगाई खाद्य तेलों की लंका
Palm oil import। खाने के तेल। तेल में मिलावट। palm oil import in India। edible oils। भारत में पाम तेल का आयात। खाने के तेल। सोयाबिन के भाव में गिरावट। सरसों –कॉटन वाश में आई भारी मंदी। राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन – पाम ऑयल।
तेल के पीछे का खेल, किसानों की बनती आ रही है सदा से रेल
भारत में खाद्य तेलों की उतरते-चढ़ते भावों और तिलहन के किसानों की जिंदगी के साथ पाम आयल इंडस्ट्री सबसे बड़ा खेल खेल रही है। जिसमें सरकार के पॉलिसी मेकर, अंतरराष्ट्रीय बाजार एवं भारतीय बाजार के तेल खिलाड़ी शामिल हैं। फसल का उत्पादन कम हो या ज्यादा, फसलों के भाव कम हो या ज्यादा, हर स्थिति में खाद्य तेल के खिलाड़ियों की मौज रहती है। आखिर क्या कारण है कि मंडी में आकर किसान बेबस हो जाता है और जो राजनीतिक दलों किसानों की मजबूती के दावों की झड़ी लगाए रखते हैं, उन्हें मंडी में किसानों की बेबसी और उनके साथ होने वाली लूट नजर नहीं आती।
त्योहारी सीजन के लिए भारत में आया 10 लाख टन पाम आयल Palm Oil
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम तेल के दामों में 40% तक की गिरावट हुई है। पाम तेल की कीमत अपने ऊंच स्तर 1800 से 1900 डॉलर प्रति मिट्रिक टन से घटकर 1,000 से 1100 डॉलर मिट्रिक टन पर आ चुकी हैं। कीमतें गिरने की वजह से दुनिया के सबसे बड़े खाद्य तेल आयातक भारत ने अगस्त में 10 लाख टन से ज्यादा पाम तेल (10.3 लाख टन) का आयात किया । पिछले महीने पाम तेल आयात 5.3 लाख टन हुआ था।
पाम ऑयल Palm Oil के आयात का कारण
बीएल एग्रो ऐसी कंपनी है जो इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल भारत में आयात करती है। कंपनी के चेयरमैन घनश्याम खंडेलवाल हैं। दरअसल भारत में खपत होने तेल का उत्पादन देश में मात्र 35% होता है, जबकि 65% हम दूसरे देशों से खरीदते हैं। 65% आयात में से 60% पाम ऑयल होता है, क्योंकि बाक़ी तेल में इसे मिलाया जाता है।
पाम ऑयल Palm Oil की अतंरराष्ट्रीय स्तर पर क्यों गिरी कीमत
इंडोनेशिया की बदलती नीतियों के कारण पाम आयल के भावों पर सीधा असर पड़ता है। अक्टूबर के अंत तक शुल्क मुक्त निर्यात की अनुमति देने के कारण बाजार में आपूर्ति में वृद्धि हुई है और कीमतों में कमी आई है। जबकि अप्रैल-मई में, इंडोनेशिया ने निर्यात पर प्रतिबंध लगाया हुआ था, जिसके कारण भाव बढ़ गए थे। अब स्टॉक को घटाने के लिए बाजार में आपूर्ति बढाई जा रही है। पाम आयल के भाव गिरने का सबसे बड़ा कारण यही माना जा रहा है।
मोदी सरकार दे रही है पाम की खेती को बढ़ावा
ताड़ के तेल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 4 टन तेल निकलता है, जोकि अन्य तिलहनों की तुलना में प्रति हेक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक होता है। केंद्र सरकार का पाम ऑयल के आयात पर 50 हज़ार करोड़ रुपये सालाना ख़र्च होता है। नए मिशन- राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन – पाम ऑयल के ज़रिए केंद्र सरकार अपने इस ख़र्च को कम करना चाहती है।
सेहत के लिए बताया जा रहा है खतरनाक
पाम आयल पीला और गंधहीन होने की वजह से सभी खाद्य तेलों में मिलाया जाता है। दूसरा सैंपू, साबुन, सौंदर्य प्रोडक्ट के साथ पेट्रोल-डीजल में भी मिलाया जाता है। विश्व की फास्टफूड इंडस्ट्री में यही तेल इस्तेमाल होता है और अब तो मिठाइयों में भी इसका इस्तेमाल करने लगे हैं। तेल विशेज्ञकों का मानना है कि जिस तेल का आप सीधे सेवन नहीं कर सकते, वो तेल आपके स्वास्थ्य के लिए कभी ठीक नहीं रह सकता। जबकि पाम आयल कभी डायरेक्ट फॉर्म में इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि इसे दूसरे खाद्य तेलों में मिलाकर बेचा जाता है। इसी कारण पाम आयल के भाव घटते ही खाद्य तेलों के भाव भी घटने लगते हैं। दोनों के बीच भाव का यह रिश्ता उपभोक्ताओं की जेब को कुछ समय के लिए जरूर राहत देता है परंतु दूसरे हाथ से आपकी सेहत को खराब करके पैसे निकलवा भी लेता है।
पाम ऑयल Palm Oil व्यापारियों की पहली पसंद
पाम तेल अन्य तेलों की तुलना में काफी किफायती है। कच्चे पाम तेल की पेशकश लागत, बीमा और माल ढुलाई (सीआईएफ) सहित 1,011 डॉलर प्रति टन पर की जा रही है, जबकि कच्चे सोया तेल के लिए 1,443 डॉलर की तुलना में यह काफी कम है। अगस्त में सोया तेल का आयात 54% घटकर 2.40 लाख टन हुआ।
पाम ऑयल Palm Oil की इंडोनेशिया ने बढ़ाई आपूर्ति
इंडोनेशिया की बदलती नीतियों के कारण पाम आयल के भावों पर सीधा असर पड़ता है। अक्टूबर के अंत तक शुल्क मुक्त निर्यात की अनुमति देने के कारण बाजार में आपूर्ति में वृद्धि हुई है और कीमतों में कमी आई है। जबकि अप्रैल-मई में, इंडोनेशिया ने निर्यात पर प्रतिबंध लगाया हुआ था, जिसके कारण भाव बढ़ गए थे। अब स्टॉक को घटाने के लिए बाजार में आपूर्ति बढाई जा रही है।
खाद्य तेलों पर आयात शुल्क घटाने से होता है भारत के किसानों को नुकसान
कहने को तो केंद्र सरकार यह दावा करती है कि हमारा लक्ष्य भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने का है। जबकि हकीकत यह है कि केन्द्र सरकार ने खाने के तेल के आयात पर कस्टम ड्यूटी में छूट को 6 महीने के लिए बढ़ाकर मार्च 2023 तक कर दी। सरकार के इस फैसले से किसानों में निराशा का भाव है और मीडिया इसे जनता के हित में लिया गया फैसला बता रही है। मीडिया रिपोर्टस का कहना है कि इससे आपूर्ति बढ़ेगी और घरेलू बाजार में दाम नियंत्रण में रहेगे। सरकार खाद्य तेल कंपनियों से दाम कम करने को भी कह रही है। जिसकी वजह से पिछले दो महीनो में 20 से 30 रु प्रति लीटर तक खाने के तेलों दाम कम हुए हैं।
तिलहन के किसानों का कहना है कि भारत सरकार द्वारा आयात शुल्क में कमी के आदेश की सीमा बढ़ाने से आयात आगे भी बड़े पैमाने पर होगी। जिससे सीधे तौर पर उन तिलहन के किसानों को नुकसान होगा। क्योंकि उन्हें अपनी फसलों के बढ़िया दाम नहीं मिलेगी। जिसके बाद वो उस फसल से किनारा भी कर सकते हैं। केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेलों के दाम गिरने की स्थिति में आयात शुल्क बढ़ा देना चाहिए। ऐसे में भारतीय खुदरा व्यापार का आकलन करने वालों का कहना है कि आयात शुल्क बढ़ाने से महंगाई लगातार बढ़ती जाएगी।
मलेशिया और शिकागो में गिरावट दर्ज
वीरवार को मलेशिया पाम तेल वायदा में मजबूती आई, लेकिन पिछले 10 सत्र में इसमें 14% तक की गिरावट आ चुकी है। वहीं शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में सोया तेल की कीमतों में 0.3% की वृद्धि हुई है। मलेशिया में मजदूरों के अभाव में ताड़ के हजारों टन फल खराब हो रहे हैं। इसलिए इन बाजारों में अभी और उठापटक रहने की संभावना है।
खाद्य तेलों में मूंगफली को छोड़कर सबके घटे भाव
आयातित तेलों में आरबीडी पामोलीन तेल के थोक भाव 125 रुपये से घटकर 115 रुपये, कच्चे पाम तेल के दाम 112 रुपये से घटकर 103 रुपये लीटर रह गए हैं। देसी तेलों में सोया रिफाइंड तेल के दाम 5 रुपये घटकर 125 रुपए, सरसों तेल के दाम 5 रुपये घटकर 140 रुपये प्रति लीटर रह गए हैं। इस दौरान सूरजमुखी तेल 172 रुपये से घटकर 168 रुपये लीटर बिक रहा है। हालांकि मूंगफली तेल के दाम 5 फीसदी बढ़कर 175 रुपये लीटर हो गए।
महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश गुजरात सहित खाद्य तेलों के भाव
गुरुवार को महाराष्ट्र के कीर्ति प्लांट ने जहां सोयाबीन खरीदी का भाव 20 रुपए तोड़कर 5588 रुपए किया, वहीं अन्य प्लांटों में सोया रिफाइन का भाव 5 से 20 रुपए प्रति 10 किलो तक कमजोर हुआ। यही स्थिति मध्य प्रदेश और गुजरात में रही। कोलकाता बेस्ट च्वाइस, आरबीडी पामोलिन का भाव 100 रुपए लीटर तक आ चुका है। पिछले सप्ताह यह 113 रुपए लीटर तक था।
खाद्य तेलों के आयात से देसी बाजार हो रहा कमजोर
विदेश से आयात होकर आने वाले खाद्य तेलों ने देसी बाजार एवं किसानों को कमजोर बना दिया है। जिसके लपेटे में सरसों एवं अन्य खाद्य तेल भी आ गए हैं। सरसों तेल में गुरुवार को भी 13रु प्रति दस किलो तक की गिरावट रही और जयपुर एक्सपेलर भाव 1280रु से नीचे आ गया। गंगानगर लाइन पर कच्ची घानी का भाव 1265 से 1270रु बोला गया।
श्राद्धों के कारण भी गिर सकते हैं खाद्य तेलों के भाव
भारतीय बाजार को श्राद्ध और नवरात्रे काफी प्रभावित करते हैं। जल्द ही पितृपक्ष यानी श्राद्ध शुरू हो रहे हैं। इसलिए व्यापारियों द्वारा नई खरीदी लगभग नहीं की जा रही। नवरात्र शुरू होने तक बाजार में मांग सुधरने की संभावना है और सरसों तेल का दाम फिर सुधर सकता है।
कपास की बंपर आवक ने बिगाड़ा भाव
मांग और खपत के सीधे गणित के हिसाब से देखें तो बढ़ती कॉटन आवक से कॉटन वॉश भारी गिरावट का सामना कर रहा है। गुजरात में यह 1205 रु के स्तर पर आ गया है, जबकि महाराष्ट्र की मंडियों में 1175 से 1195 रुपए के भाव हैं। इस तेल में भी और गिरावट आ सकती है।
सुरजमुखी, मूंगफली, सोया तेल
सूरजमुखी तेल के आयात रास्ते खुलने से बाजार काफी कमजोर हो चुका है। चेन्नई में 1220रु, लातूर मंडी में 1350 रु लगाया गया है। मूंगफली तेल 1600 से लेकर 1675 रुपए के सीमित दायरे में है और इसमें बड़ी घट बढ़ की संभावना आगे भी नहीं है। सोया तेल की कीमतों में शाम के सत्र में 1.15 फीसदी की गिरावट आई।
सोयाबीन के अभी और घटेंगे दाम
सोयाबीन की नई फसल अच्छी होने की उम्मीद में इसके दाम लगातार गिर रहे हैं। महीने भर में भाव 1,000 रुपये प्रति क्विंटल गिर चुके हैं। नई फसल के भाव 5,000 रुपये क्विंटल से नीचे खुल सकते हैं और भाव लुढ़क कर 4,500 रुपये तक भी आ सकते हैं। मध्य प्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। अशोकनगर मंडी (MP) के सोयाबीन कारोबारी राजेश पालीवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि-“ इस साल सोयाबीन की पैदावार बढ़ने के साथ ही इसकी गुणवत्ता भी रहने की उम्मीद है, बशर्ते आगे ज्यादा बारिश से नुकसान न हो। उत्पादन बढ़ने की उम्मीद में महीने भर में सोयाबीन के भाव 1,000 रुपये घटकर 5,200-5,300 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। पहले किसानों ने नई आवक से पहले सोयाबीन के भाव ज्यादा मिलने की उम्मीद में इसका स्टॉक कर रखा था। लेकिन ऐसा न होने से अब वे मंडियों में आवक बढ़ा रहे हैं। मंडी में इस समय 1,500 से 2,000 बोरी सोयाबीन की आवक हो रही है, जबकि आमतौर इस समय 150 से 200 बोरी ही आवक होनी चाहिए। ओरिगो ई-मंडी के सहायक महाप्रबंधक (जिंस-शोध) तरुण तत्संगी कहते हैं कि “चालू खरीफ सीजन में सोयाबीन की बंपर फसल की संभावना, सरसों का ज्यादा स्टॉक और मलेशिया में कच्चे पाम तेल की कीमतों में कमजोरी की वजह से सोयाबीन की कीमतों में लगातार गिरावट का रुख बना हुआ है।