Papaya Ring Spot विषाणु रोग से बचाने का उपाय
पपीते में विटामिन ए और सी की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके अलावे पपीते में पपेन नामक का एक महत्वपूर्ण एंजाइम भी पाया जाता है जो शरीर की अतिरिक्त चर्बी को हटाने में काफी सहायक होता है। उन्होंने कहा कि पपीता काफी कम दिनों में पक कर तैयार हो जाने वाला फल है तथा यह कच्चा और पका दोनों स्थिति में अत्यंत लाभकारी है।
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पपीता के प्रमुख रोग एवं उपचार – Papaya Plant Diseases And Treatment In Hindi
पपाया रिंग स्पॉट (Papaya ringspot), लीफ कर्ल (leaf curl), मंद मोजेक रोग (Dim Mosaic Disease), पपीता में तना तथा जड़ गलन रोग (papaya root rot), लीफ स्पॉट (leaf spot), डैम्पिंग ऑफ (damping off), फल सड़न (fruit rot), पाउडरी मिल्ड्यू (powdery mildew)
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पपीता रिंग स्पॉट के लक्षण Symptoms of Papaya Ring Spot Disease
पपीते की पत्तिया पीली पड़ने लगती हैं। यह फलों एवं पत्तों दोनों में हो जाता है। यह बताया जाता है कि यह बीमारी एफिड्स द्वारा पौधे से पौधे में फैलती है। पपीते के पौधे पर इस वायरस या रोग का फैलाव ऐफिस गोसिपाई (Aphis gossypii) और माइजस पर्सिकी (myzus persicae) जैसे रोगवाहक कीटों, अमरबेल या अन्य पक्षियों द्वारा होता है। रिंग स्पॉट रोग से प्रभावित पपीते के पौधों में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं: पत्तियां चितकवरी तथा आकार में छोटी हो जाना, पत्तियों की सतह खुरदुरी होना, पत्तियों पर गहरे हरे रंग के फफोले दिखाई देना, कटी-फटी हुई पत्तियां, पौधे की ग्रोथ न होना, पत्तियों व तनों पर गहरे हरे रंग के धब्बे और लम्बी धारियां उत्पन्न होना, इत्यादि।
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पपीते की उन्नत किस्में High yield varieties of Papaya
पपीता की राष्ट्रीय उत्पादकता 43.30 टन /हेक्टेयर है। पपीते की व्यावसायिक खेती में उभयलिंगी किस्मों जैसे सूर्या ( भारतीय बागवानी अनु. सं. बैंगलोर ) सनराइज सोलो, रेडी लेडी -786 के साथ किचिन गार्डन के लिए पूसा नन्हा, कुर्ग हनीड्यू, पूसा ड्वार्फ, पंत पपीता 1, 2 एवं 3 के चयन को प्राथमिकता दें। अर्का प्रभात (पपीते की बेहतरीन किस्मों में से एक है, इस पर फल 1 किलो से ज्यादा के लगते हैं और यह उभयलिंगि है।) अर्का सूर्या (इसके पपीते का छिलका मुलायम, वजन-600-800ग्राम, पेड़ उपज-60-70 किलो प्रति पेड़ एवं 60 टन प्रति एकड़) वाशिंगटन (काफी लोकप्रिय वैरायटी, वजन डेढ़ किलो तक, रग गहरा पीला, एक पेड़ पर औसतन-60 किलो) पूसा जायंट (तेज हवा व बारिश वाले इलाकों के लिए बेस्ट है, फल का वजन- 2 से 3 किलो. प्रति पौधा उपज-35 किलो) पूसा डेलिशियस (पौधे का आकार बौना, फल खूब देते हैं, औसतन-60 किलो प्रति पौधा, फल का वजन 1 से 2 किलो। पूसा ड्वार्फ (इसके फल अंडाकार के होते हैं।वजन 1 से 2 किलो, पैदावार-45 किलो औसत,सघन बागवानी में सही रहते हैं।
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पपीता(Papaya) लगाने का सही समय क्या है?
लगभग 10 से 13 महीने में तैयार होने वाली केले की फसल (Papaya Farming) का बीज (papaya seeds) जुलाई से सितंबर या फिर फरवरी-मार्च के बीच लगा देते हैं। परंतु जानकारों का मानना है कि अक्टूबर सबसे बेस्ट टाइम है।
अक्टूबर पपीते(Papaya) के लिए क्यों हैं बेस्ट
अक्टूबर माह में आप पपीता लगा सकते है। इस महीने में लगाए गए पपीता में विषाणु रोग कम लगते है। पपीता में फूल आने से पहले यदि पपाया रिंग स्पॉट रोग पपीता में लग गया तो फल नहीं लगता है। इस रोग को प्रबन्धित करने का प्रमुख सिद्धांत यह है की इस रोग को आने से अधिक से अधिक समय तक रोका जाए।
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अखिल भारतीय फल परियोजना (ICAR-AICRP on Fruits ) एवम् डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (RPCAU ,Pusa)ने तकनीक विकसित किया है,उसके अनुसार खड़ी पपीता की फसल में भिभिन्न विषाणुजनित बीमारियों को प्रबंधित करने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए।
पपीता को पपाया रिंग स्पॉट(Papaya Ring Spot) विषाणु रोग से बचाने का उपाय
पपीता को पपाया रिंग स्पॉट विषाणु रोग से बचाने के लिए आवश्यक है कि 2% नीम के तेल जिसमे 0.5 मिली प्रति लीटर स्टीकर मिला कर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवे महीने तक करना चाहिए I उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है की यूरिया @ 04 ग्राम , जिंक सल्फेट 04 ग्राम तथा घुलनशील बोरान 04 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव पहले महीने से आठवे महीने तक छिड़काव करना चाहिए I
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उपरोक्त रसायनों का अलग अलग छिड़काव करना चाहिए। जिंक सल्फेट एवम बोरान को एक साथ मिला देने से घोल जम जाता है ,जिससे छिड़काव करना मुश्किल हो जाता है। बिहार में पपीता की सबसे घातक बीमारी जड़ गलन के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की हेक्साकोनाजोल @ 2 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दिया जाय,यह कार्य पहले महीने से लेकर आठवें महीने तक मिट्टी को उपरोक्त घोल से भिगाते रहना चाहिए ।
शुरुवात में प्रति पेड़ को भीगने में बहुत कम दवा के घोल की आवश्यकता पड़ती है लेकिन जैसे जैसे पौधा बढ़ता जाता है घोल की मात्रा भी बढ़ते जाती है। सातवें आठवें महीने तक पहुंचते पहुंचते एक बड़े पौधे को भीगने में 5-6 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होती है।