पंजाब में किन्नू की खेती(Kinnow Cultivation) का प्रचलन काफी बढ़ रहा है और प्रति हेक्टेयर औसतन 30 टन किन्नू का उत्पादन हो जाता है। अगर हम पंजाब राज्य की बात करें तो यहां लगभग 11 लाख टन किन्नू हो जाता है। किन्नू की तुड़ाई का समय नवंबर से लेकर मार्च तक चलता है। पंजाब के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, राजस्थान व जम्मू-कश्मीर में साइट्रस की खेती होती है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (लुधियाना) ने 2015 में PU किन्नू-1 नाम से एक प्रजाति विकसित की है, जिसमें कम बीज होते हैं।
इस बार पंजाब में किन्नू की फसल(Kinnow Cultivation) के उत्पादन में भारी गिरावट की संभावना जताई जा रही है। जिसके कारण किन्नू के भाव तेज रहेंगे या कम होंगे। यह कयास लगाए जा रहे हैं। कम उत्पादन के कारण दामों पर असर पड़ना स्वाभाविक है। इस बार आपको किन्नू खाने के लिए ऊंचे दाम चुकाने पड़ सकते हैं।
दरअसल इस बार पंजाब में मार्च में भीषण गर्मी पड़ी थी और उसके बाद में नहरों के टूटने से फसल को काफी नुकसान हुआ था। वहीं दूसरी तरफ दूषित पानी की वजह से फसल पर असर पड़ना स्वाभाविक है। यह दूषित पानी अधिक बरसात होने के कारण खेतों में पहुंच गया था। कृषि विश्वविद्यालय ने भी इस बार किन्नू के उत्पादन में 50 फीसदी गिरावट की संभावना जताई है। जहां तक पंजाब की बात करें तो एक सीजन में पंजाब में औसतन 11 लाख टन किन्नू उतरता है। इस बार यह 5 से 6 लाख टन तक रखने के चांस हैं। जिसके कारण किन्नू के रेट बढ़ने की उम्मीद है।
इस बार किन्नू की फसल(Kinnow Cultivation) खराब करने में कारखानों से निकलने वाले दूषित रसायन भी बड़ा कारण रहे हैं। किसानों का कहना है कि इस बार दूषित पानी की वजह से फाजिल्लका जिले में करीब 50 हजार एकड़ में किन्नू की फसल तबाह हो गई है और कई एकड़ में बाग सूख चुके हैं। फाजिल्का जिले में सर्वाधिक 2.5 लाख एकड़ में किन्नू फल उगाया जाता है। भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राह) फाजिल्का जिला अध्यक्ष गुरभेज रोहीवाला ने कहा है कि पानी की कमी और प्रदूषित पानी ने कई बागों को तबाह कर दिया है।
सर्वश्रेष्ठ किन्नू(Kinnow) किसान का पुरस्कार से सम्मानित बागवान राजिंदर सिंह सेखों ने किन्नू की खराब हुई फसलों को लेकर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि फसल को इतना बड़ा नुकसान पहली बार हुआ है। मैंने इस बार 13 एकड़ में से 6 एकड़ पर लगे किन्नू के पेड़ों को खो दिया है। यह केवल फल की बर्बादी भर नहीं है, बल्कि वो पेड़ ही सूख गए हैं। जो लंबे समय तक फल देते। एक पौधों को फल देने में कईं साल लग जाते हैं।
किसान ने बताया कि पिछली बार उसके खेत में करीब 3000 क्विंटल किन्नू का उत्पादन हुआ था, परंतु इस बार 600 क्विंटल ही होने के चांस हैं। अब जाहिर सी बात है कि जब पंजाब में किन्नू का उत्पादन इतने बड़े स्तर पर प्रभावित होकर कम हो रहा है तो किन्नू के भाव बढ़ने स्वाभाविक हैं। हालांकि किसानों को इस बार भाव (रेट) ज्यादा मिल रहे हैं पर जब उत्पादन ही कम हो रहा है तो भाव बढ़ने का ज्यादा फायदा किसानों को नहीं हो रहा है।
आमतौर पर पंजाब में किसानों को किन्नू का 10 से 15रु तक भाव मिलता है। परंतु इस बार काफी कम उत्पादन होने के कारण उन्हें भाव (रेट) 30 से 35रु किलो के हिसाब से मिलने की संभावना है। पर इन दामों से भी किसानों के नुकसान की भरपाई होना संभव नहीं है। हां, किन्नू के उपभोक्ताओं को जरूर इस बार किन्नू खट्टा स्वाद देंगे। क्योंकि किन्नू के दाम लगभग दोगुना से तिगुना बढ़ने के साफ आसार लग रहे हैं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के फल विज्ञान विभाग के प्रमुख रतनपाल ने कहा कि उत्पादन में कमी के दो कारण हैं। गर्मियों की शुरुआत और मार्च में तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप फल और फूल गिर गए। दूसरा फाजिल्का जैसे क्षेत्रों में नहरें टूट गई, जिससे जल संकट और जलजमाव दोनों पैदा हो गए।
अतः इस बार किन्नू के दामों में इजाफा होना लाजिमी है। ये दाम दो गुने से लेकर चौगुने तक हो सकते हैं। जिसका असर उपभोक्ता की जेब पर पड़ता दिख रहा है, परंतु इन बढ़े हुए दामों का फायदा किसानों को भी नहीं मिलेगा, क्योंकि इस बार पंजाब में किन्नू का उत्पादन लगभग 40 से 60 प्रतिशत कम होने की संभावना जताई जा रही है।