तेल तिलहन के वायदा कारोबार Oilseeds Forward Trading से प्रतिबंध हटाने की उठी मांग

Oilseeds Forward Trading से प्रतिबंध हटाने की उठी मांग

Mustard Oil Producers Association Of India (MOPA) ने की मांग

गौरतलब कि आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ने के कारण सरकार चिंतित थी. सरकार द्वारा उपभोक्ता मंत्रालय , वाणिज्य मंत्रालय एवं कृषि मंत्रालय द्वारा संयुक्त तौर पर आयोजित वेबीनार में अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ( कैट) के महानगर अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने यह सुझाव दिया था की दामों को काबू में लाना है तो वायदा कारोबार पर रोक लगानी चाहिए ।

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भारत सरकार ने लगाया था प्रतिबंध

भारत सरकार ने 8 अक्टूबर 2021 को तेल तिलहन के वायदा कारोबार पर खाद्य तेलों के बढ़ते दामों और आसमान छूती महंगाई पर रोक लगाने के लिए लगाया था।

प्रतिबंध हटाने की रखी मांग

Mustard Oil Producers Association Of India (MOPA)(मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) के अध्यक्ष बाबू लाल डाटा ने नेशनल कमोडिटिज एण्ड डेरिवेटिव्ज एक्सचेंज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर को पत्र लिखा है और 10 मांगों पर विचार करना का आग्रह किया है। भारत सरकार के 8 अक्टूबर 2021 में अधिसूचना के जरिए लगाया प्रतिबंध। इन प्रतिबंधो को लगभग 11 महीने हो गए हैं। डाटा लिखते हैं कि-“ यह समय की मांग है कि इनका विश्लेषण एवं विवेचना कर उचित निर्णय लिया जाए, जो कि बाजार के प्रतिभागियों किसानों एवं अर्थ उपभोक्ताओं के हित में हो।”

वायदा कारोबार क्या है ? What is Oilseeds Forward Trading

वायदा अनुबंध में खरीदार और विक्रेता की सहमति से एक निश्चित कीमत पर भविष्य के एक नामित महीने में वित्तीय साधन/वस्तु की एक निर्धारित मात्रा में खरीदने या बेचने के लिए एक करार किया जाता है।

Mustard Oil Producers Association Of India (MOPA) (मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) के अध्यक्ष बाबू लाल डाटा का लिखा गया पत्र-

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प्रतिंबध का हुआ तिलहन प्रसंस्करण उद्योग, किसान एवं व्यापारियों पर बुरा असर

पिछले 11 महीनों में जब से वायदा बाजारों (Oilseeds Forward Trading) पर प्रतिबंध लगाया गया है. अंतरराष्ट्रीय वायदा बाजारों में जैसे कि BMD CPO, CBOT Soyabean Oil, DCE Soyabean and Palm Oil आदि कॉन्ट्रैक्ट के अंदर बहुत ज्यादा तेजी मंदी के व्यापार हुए हैं, जिससे कि भारतीय बाजार में तिलहन प्रसंस्करण उद्योग, किसान एवं व्यापारियों पर बहुत बुरा असर हुआ है। भारतीय वायदा व्यापार में खाद्य तेल तिलहन वायदा प्रतिबंधित होने से बाजार प्रतिभागी अपने मूल्य जोखिम प्रबंधन से भी वंचित रह गए जो कि इस समय की अत्यंत आवश्यकता थी। BMD CPO कॉन्ट्रैक्ट के अंदर एक-एक दिन में 10%-12% तक की तेजी मंदी हुई हैं, जिसका सीधा प्रभाव भारतीय खाद्य तेलों एवं तिलहन के मूल्यों पर भी पड़ा हैं वायदा बाजारों के बंद हो जाने से व्यापारी वर्ग या प्रोसेसर को अग्रिम सौदे करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा।

वायदा बाजार (Oilseeds Forward Trading) को बंद करने नहीं बताया ठोस कारण

वस्तुतः सरकार के द्वारा आधिकारिक रूप से वायदा बाजारों को बंद करने का कोई कारण नहीं बताया गया पर बाजार के प्रतिभागी यह मानकर चल रहे हैं कि यह निर्णय आवश्यक वस्तुओं के मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए गए थे जब देश में वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगा तो विदेशी बाजारों की तेजी के कारण देश के हाजिर बाजार में भी तेजी देखने को मिली। उल्लेखनीय है कि पूर्व में जितनी तेजी विदेशों में देखने को मिली उतनी तेजी भारतीय बाजारों में देखने को नहीं मिली इसका मुख्य कारण देश का वायदा बाजार चालू था वायदा बाजार किसान एवं उपभोक्ता के लिए एक सेतू का काम करता हैं जो सरकार को इन दोनों के हितों की रक्षा करने में सहायता प्रदान करता हैं। जब प्रचलित भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे जाने लगे एवं प्रचलित भाव बहुत तेजी से बढ़ने लगे तब किसानों एवं उपभोक्ता के हित में वायदा बाजार ही इन दोनों परिस्थितियों से निपटने में अपनी अहम भूमिका निभाता हैं।

विदेशी बाजार के कारण भारत में बढ़े खाद्य तेलों के भाव

भारत सरकार ने दिसम्बर 2021 से तेल तिलहन के वायदा पर प्रतिबन्ध लगाया था। उल्लेखनीय हैं कि दिसम्बर 2021 से मई 2022 तक प्रतिबन्ध के फलस्वरूप खाद्य तेलो के भावों में काफी तेजी का माहोल बना रहा क्योंकि तब विदेशो में लगातार खाद्य तेलों में बड़ी तेजी बनी रही एवं हम सब खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि को असहाय रूप से देखते रहे कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से सप्लाई चेन टूट गई थी। भारत सरकार ने निरन्तर सभी प्रयास किए लेकिन उनके परिणाम आशानुरूप नही रहे। जून माह 2022 से जब विदेशी बाजारों में 40% से 45% की कमी खाद्य तेलों के दामों में हुई तब ही जाकर हमारे देश में भी स्वतः ही खाद्य तेलों की दरो में कमी देखने को मिली। उल्लेखनीय है कि गत वर्षों में विदेशी बाजारों में तेजी बनी रही परन्तु यहाँ इनका असर नाम मात्र का रहा जबकि वायदा बाजार निरन्तर चालू रहा। जैसा कि सभी को विदित हैं कि भारत अपनी आवश्यकता का लगभग 65% खाद्य तेल आयात करता हैं एवं लगभग 35% से 40% की पूर्ति देश से ही होती हैं। यदि विदेशी बाजारों में तेजी ही आधार माना जाए तो गत वर्षो में भारत का वायदा कारोबार चालू रहते हुए भारतीय बाजारों में स्थिरता का दौर बना रहा अन्यथा यहाँ सरसों 10,000 /- रूपये प्रति क्वि. सोयाबीन 12,000/- रूपये प्रति क्वि. एवं तेल 200/ रुपये प्रति लिटर के भाव हो जाते। अतः यह स्पष्ट है कि खाद्य तेलों में तेजी मंदी का वायदा कारोबार से कोई सीधा संबंध नहीं हैं एवं सब कुछ विदेशी बाजारों पर निर्भर भी हैं एवं नहीं भी हैं। वायदा बाजार तो खाद्य तेलो में स्थिरता प्रदान करने का हथियार मात्र हैं एवं सट्टेबाजी को रोकने का कारगर उपाय हैं।

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विश्व में कहीं नहीं लगता वायदा कारोबार (Oilseeds Forward Trading) पर प्रतिबंध

उल्लेखनीय हैं कि पूरे विश्व में सभी कृषि जिंसो में वायदा कारोबार किसी भी विपरीत परिस्थिति में चालू रहता है एवं उस पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नही रहता है क्योकि विश्व में किसान एवं उपभोक्ता के बीच प्राइस बेस का उचित रूप से समन्वय रहता है। हम खाद्य तेलों के सम्बंध में विश्व स्तर पर PRICE: TAKER हैं न की PRICE MAKER यही कारण है कि वायदा बाजारों को प्रतिबंधित करना किसी समस्या का समाधान नही हैं एवं इससे बाजारों में तेजी मंदी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।

वायदा बाजार (Oilseeds Forward Trading) पर प्रतिबंध से किसानों व उपभोक्ताओं को हुआ नुकसान

वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगने के कारण इसका विपरित प्रभाव किसानों एवं उपभोक्ताओं पर पड़ा। किसान असमंजस की स्थिति में रहता है कि उसका माल किस भाव पर बिकेगा एवं उपभोक्ता को यह पता ही नही लगता कि उसको माल किस भाव से खरीदना पड़ेगा।

वायदा बाजार (Oilseeds Forward Trading) पर प्रतिबंध से भारत सरकार को हुआ राजस्व का नुकसान

उल्लेखनीय है कि वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगाने से भारत सरकार के राजस्व में भारी कमी देखने को मिली। यदि वायदा बाजार पुनः शुरू कर दिया जाए तो भारत सरकार को जो राजस्व मिलेगा उसका उपयोग किसानों की आय में वृद्धि हेतु किया जा सकता हैं।

वायदा बाजार (Oilseeds Forward Trading) पर प्रतिबंध लगाने से हुआ विदेशी बाजार को फायदा

वर्तमान में देश के किसानों के पास सरसों, सोयाबीन, मुंगफली एवं अन्य तिलहन का स्टाक लगभग 85 से 90 लाख टन है एवं खरीफ सीजन की फसल में सोयाबीन एवं मुंगफली की पैदावार क्रमश 130 लाख टन एवं 85 लाख टन के करीब होने की सम्भावना है एवं आगामी रबी सीजन की सरसों एवं अन्य तिलहन की पैदावार को मद्धे नजर रखते हुए हमारे पास मार्च माह तक लगभग 350 लाख टन माल हाजिर में उपलब्ध रहेगा। पिछले कुछ सालों से भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के अथक एवं विशेष प्रयासों से तिलहन की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई हैं क्योंकि उन्होने किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प लिया है। यदि इस दिशा में समयपूर्व महत्वपूर्ण उचित कदम नही उठाये तो तिलहन की पैदावार में कमी की सम्भावना हो सकती है जिसका सीधा लाभ विदेशी बाजारों को मिलेगा।

तेल तिलहन वायदा बाजार (Oilseeds Forward Trading) को भी शीघ्र ही शुरू किया जाए

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पूर्व में भारत सरकार ने सोयाबीन ऑयल, सोयाबीन सीड, उड़द, चना, ग्वार, ग्वारगम, अरण्डी इत्यादि कृषि जिंसो के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाया था परन्तु उचित समय पर सरकार ने निर्णय लेकर वायदा बाजार को पुनः बहाल किया जिसके परिणाम अनुकुल रहे। अतः आवश्यकता इस बात की है कि तेल तिलहन वायदा बाजार को भी शीघ्र ही शुरू किया जाए।

वायदा बाजर (Oilseeds Forward Trading) बंद कर देने से प्राइस डिसकवरी में बड़ी रुकावट

वर्तमान में फिजिकल मार्केट के अंदर कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, अगर आप देखे तो पहले सभी कृषि मंडियों के भाव काफी हद तक वायदा बाजार के अनुरूप चलते थे लेकिन अब विभिन्न कृषि मंडियों के व्यापार भाव जो हैं यह अलग-अलग हो गए हैं। वर्तमान परिस्थितियों में किसान वर्ग भी असमंजस में है पहले जब किसान अपने घर से मंडियों के लिए माल बेचने के लिए निकलता था तो यह वायदा बाजार के भाव विभिन्न माध्यमों से जैसे कि समाचार पत्र, टीवी चैनल एवं मोबाइल ऐप के माध्यम से देख लेता था और उसे यह अंदाजा होता था कि उनके उपज का क्या मूल्य लगभग उनको प्राप्त हो सकता है वायदा बाजर बंद कर देने से प्राइस डिसकवरी में बड़ी रुकावट आ गई और इससे सभी वर्गों का बड़ा नुकसान हो रहा है एवं फिजिकल मार्केट अपनी सामान्य परिस्थितियों के जैसे भी नहीं चल पा रहे।

वायदा बाजार (Oilseeds Forward Trading): मूल्य प्रबंधन एवं मूल्य जोखिम का औजार

मुद्रास्फीति एवं भावों में बढ़ोतरी से विगत 2 वर्षो से बहुत सारी विदेशी सरकारें जूझ रही हैं और उनके यहाँ पर Regulatory संस्थाओं ने विभिन्न प्रकार के कदम उठाए जैसे कि आयात या निर्यात पर रोक, व्यापार शुल्क लगाना आदि, लेकिन किसी भी विदेशी सरकार ने वायदा बाजार पर कोई प्रतिबंध नही लगाया क्योंकि वायदा बाजार को मूल्य प्रबंधन एवं मूल्य जोखिम के रूप में औजार के रूप में देखा गया है, और एक विश्वसनीय एवं ताकतवर वायदा बाजार किसानों, व्यापारियों एवं प्रसंस्करण उद्योगों के लिए फायदेमंद साबित होता हैं, अतः वायदा बाजार देश के विकास में अपना योगदान साबित करता हैं।

अध्यक्ष का अनुरोध

Mustard Oil Producers Association Of India (MOPA) (मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) के अध्यक्ष बाबू लाल डाटा ने अनुरोध करते हुए लिखा है कि-“इन विस्तृत बिंदुओं को ध्यान में रखकर हम आपसे अनुरोध करते हैं कि बंद किये गए तेल तिलहन वायदा बाजार का मूल्यांकन किया जाए एवं अतिशीघ्र बंद किए गए तेल तिलहन वायदा बाजार को चालू किया जाए। ऐसा करने से आगामी त्यौहारी सीजन में खाद्य तेलों की कीमतों में स्थिरता देखने को मिलेगी एवं व्यापार गतिविधियों में तेजी आयेगी जिसके फलस्वरूप सरकारों की आय में विभिन्न करों के माध्यम से राजस्व में वृद्धि देखने को मिलेगी।”

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