जैविक खेती की वजह से श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता महज अफवाह

लेखकडॉ. पवन के टाक,
मुख्य प्रबन्धक एवं शोधकर्ता, गोयल ग्रामीण विकास संस्थान कोटा, श्रीरामशान्ताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र
संपर्क दूरभाष नं. – 9571608164 ईमेल- [email protected]

श्रीलंका में अस्थिरता

पृष्ठभूमि

वर्तमान समय में श्रीलंका के विषय में विश्व भर में चर्चा एवं चिंतन जारी है। इसी परिपेक्ष्य में यह भी देखने, सुनने एवं पढनें में आ रहा है कि श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता का कारण जैविक खेती भी है। कई बुद्धि जीवीयों की इस तरह की टिप्पणीयों से विश्वभर में जैविक खेती या प्राकृतिक खेती के आलोचको को नई ऊर्जा मिली है क्योकि उनका मानना है कि कृषि रसायनों के बिना खेती करना मूर्खता है, वही जैविक एवं प्राकृतिक खेती के समर्थको में चिंता का विषय पनप गया। साथ ही उक्त दोनों श्रेणीयों के बीच उन लोगों में भय का वातावरण बन रहा है। जो भविष्य में अपना करियर जैविक खेती में बनाने वाले है।

श्रीलंका में कृषि की स्थिति

उक्त अर्न्तराष्ट्रिय मुद्दे पर वर्तमान में की जा रही टिप्पणीयों के पीछे की रणनीती की जानकारी तो नही है लेकिन इस वैज्ञानिक युग में प्रर्याप्त सूचनाएं (सारगर्भित) होते हुए ऐसी टिप्पणीयाँ राष्ट्र के लिए महज अफवाह होते हुए भी चिन्ता पैदा कर देगी । जब इस विषय पर चिन्तन करते है तो यह विषय महज अफवाह साबित होता है। इसका सार निम्नलिखित है –
आप सब को जानकारी होगी कि श्रीलंका को जैविक देश बनाने की घोषणा दिनांक 29 अप्रैल 2021 को हुई। मतलब इससे पहले देश में एग्रीकल्चर रसायन का प्रयोग अनुमतः था और श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता की नीवं तो पांच साल पहले ही लग गई। वर्ष 2018-19 की जी.डी.पी. की चर्चा करे तो वर्ष 2018 में जीडीपी 2017 के मुकाबलें 0.31 कम रही। वर्ष 2019 में जी.डी.पी. वर्ष 2018 के मुकाबले 0.94 कम, वर्ष 2020 में जीडीपी वर्ष 2019 के मुकाबले माइनस 3.62 प्रतिशत एवं वर्ष 2021 में जीडीपी वर्ष 2020 के मुकाबले 7.27 प्रतिशत वृद्धि हुई।

हालत खराब होने के कारण

उपरोक्त आंकडों में वर्ष 2017 से वर्ष 2020 तक एग्रो केमिकल को प्रतिबंधित न होते हुए भी जीडीपी माइनस तक गई है। वही जिस वर्ष एग्रो केमिकल पर प्रतिबन्ध लगा उस वर्ष की जीडीपी अचानक बढी है न की कम हुई। दूसरी बात आपको बताएं कि श्रीलंका की जीडीपी इस विवरणानुसार लगता है कि जैविक देश घोषणा से कृषि के विकास में नुकसान नही हुआ है। हाँ यह सत्य है कि उत्पादन को कोरोना काल में समय पर एक्सपोर्ट नही करने की वजह से नारियल, रबर, चाय जैसे आर्थिक व्यवस्था वाले उत्पाद खराब जरूर हुए जिससे अरबों खरबों का नुकसान हुआ लेकिन इसमे दोष जैविक खेती का नही, कोरोना काल में एक्सपोर्ट का बैन होना है। एग्रीकल्चर सेक्टर का योगदान एग्रो केमिकल प्रतिबन्धित होने के बाद 7.4% रहा। वही वर्ष 2016 में जब एग्रो केमिकल प्रतिबन्धित नही थे तब भी जीडीपी में योगदान एग्रीकल्चर का 7.43 % ही था। ठीक वैसे ही जीडीपी में योगदान पिछले 5 वर्षो में इतना ही नजर आता है

श्रीलंका की सरकारी रिपोर्ट CE2021-0002 जिसका शीर्षक Grain And Feed Annual-2021 के अनुसार श्रीलंका की मुख्य फसल धान की वार्षिक उत्पादकता की तुलना में 2.5 प्रतिशत बढ़ी है। उत्पादन इस समय रिकार्ड तोड़ चुका है। लेकिन यह सत्य है कि इसके बाद भी खाद्य सकंट चरम पर पहुँच चुका है। इसकी वजह है श्रीलंका की विदेश नीति, न की खेती या जैविक खेती। क्योंकि श्रीलंका में जहाँ अधिकतम जनसंख्या का भोजन चावल है। वही एक बड़ा वर्ग गेहूं पर भी आधारित है और गेहूं का उत्पादन श्रीलंका में होता नही 100% गेहूं आयात किया जाता है।

लेकिन श्रीलंका की विदेशी मुद्रा न्यून स्तर पर आने की वजह से से अन्य आवश्यक वस्तुओं की भाँति गेहूं के आटा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। परिणाम स्वरूप गेहुँ की निर्भरता एवं व्यवस्था चावल से होने लगी। इसलिए चावल की भी खपत अचानक बढ़ गई, वर्ष 2018-19 में चावल की खपत 250000 मीट्रिक टन खपत थी जो वर्ष 2019-20 में 3.05 MMT पर चला गया, और वर्ष 2020-21 में 3.05 MMT से पार कर चुका था। तो वर्ष 2022 का दौर तो संकट मय होना तय था। खाद्य संकट के अलावा आर्थिक संकट में भी यदि कहीं जैविक खेती का विषय आये तो पहले निम्नलिखित विवरण को समझ लिजिए

विश्लेषण

श्रीलंका की आर्थिक व्यवस्था में मूल आयाम तीन प्रकार के है जिसमें प्रथम प्राईवेट रेयिटेन्स, द्वितीय टेक्सटाइल एवं गारमेन्ट है तृतीय स्थान पर्यटन का है। उपरोक्त इन तीनों आयामों में महत्वपूर्ण क्षेत्र पर्यटन है, पूर्व में जीडीपी में 12% योगदान रहा है। जो धीरे धीरे कम होता जा रहा है। वर्ष 2018 में श्रीलंका में 2.3 मिलियन पर्यटको से 4.4 बिलियन डॉलर का योगदान से जीडीपी में 5.6 %से भागीदारी रही। वही वर्ष 2019 में 4.6 % कम होते हुए वर्ष 2020 में जीडीपी में योगदान 0.80% पर सिमट गया।अर्थात् श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने में पर्यटन भी एक महत्वपूर्ण बिन्दु है। इसका मूल कारण कोरोना एवं चर्च पर हुआ हमला है।

पर्यटन के बाद एक बिन्दु है – टैक्स जो श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में 13% योगदान करता है लेकिन वहाँ की तत्कालीन सरकार द्वारा इस योगदान को नकार दिया था। अर्थात् टैक्स मुक्त व्यवस्था शुरू कर दी। ये भी आर्थिक अस्थिरता का कारण बना। जैविक खेती की घोषणा के बाद खेती में आवश्यक इंफास्ट्रचर बनाने की बजाय चीन के माध्यम से अनावश्यक इंफास्ट्रचर जैसे बदंरगाह, सड़के, भवन निर्माण का कार्य करके कर्जयुक्त व्यवस्था का सृजन इस दौर में हुआ।

अब चर्चा करते है जैविक कृषि पर

बतौर लेखक मै स्वंय जैविक खेती का शोधकर्ता भी हूँ। पिछले 11 वर्षो से 200 से ज्यादा प्रकार की फसलों पर प्रयोगिक अनुभव भी रखता हुँ। जैविक खेती में ज्ञान की आवश्यकता ज्यादा है और आदान (इनपुट) की आवश्यकता कम। जैविक खेती में प्रारम्भ में जहाँ भी उत्पादन कम होने की बात आई, वहाँ ज्ञान की दक्षता का अभाव भी पाया गया। हमारे केन्द्र पर सचांलित शोध कार्यो में पिछले वर्ष 43 फसलों का उत्पादन रसायनिक खेती की तुलना मे डेड गुणा ज्यादा था। जैसे गेहुँ प्रति हेक्टर 60 क्विंटल , सरसों 36 किवंटल प्रति हेक्टर हमारा सामान्य उत्पादन रहा।

इसके अलावा हमारे किसानो का उत्पादन भी जैविक खेती में उत्कृष्ट रहा। पूर्व में श्रीलंका के समकक्ष देश भूटान में वर्ष 2008 में जैविक देश की घोषणा हुई। बिना किसी आर्थिक स्थिरता के वर्ष 2020 में सम्पूर्ण भूटान जैविक खेती पर स्थिर हुआ। आत्मनिर्भर स्वालम्बी देश के रूप में आज उदाहरण है। दूसरा उदाहरण भारत में सिक्किम राज्य का है, वर्ष 2003 में जैविक प्रदेश बनाने की घोषणा हुई और बिना किसी आर्थिक अस्थिरता के वर्ष 2016 में जैविक प्रदेश के रूप में देश का पहला राज बना। तीसरा उदाहरण राजस्थान राज्य में डूंगरपुर जिला का है। वर्ष 2016 में जैविक जिला बनाने की घोषणा हुई, बतौर चीफ ट्रेनर में इस कार्य में शून्य से शिखर तक यहाँ प्रतिभागी रहा हूँ। यहाँ पर भी बिना किसी आर्थिक अस्थिरता के सफलता हासिल होने पर अग्रसर है।

उपरोक्त सभी तथ्यों से साबित होना है कि श्रीलंका की आर्थिक अस्थिरता में जैविक खेती का कोई सम्बन्ध नही है।
बहुत कम लोगो को जानकारी होगी कि श्रीलंका के समकक्ष दुनिया में ऐसे कई राष्ट्र है जहाँ श्रीलंका से भी ज्यादा आर्थिक अस्थिरता बन चुकी है। इसमें अफ्रीका देशों में छः देश प्रमुख है। लेबनान, सुरीनाम, जाम्बिया, रूस, बेलारूस, यूक्रेन, टयुनीशीया, घाना, इजीप्ट, अर्जेन्टीना, इक्वाडोर, इथोविया, केन्या, माइजीरिया, पाकिस्तान, आदि प्रमुख देश है।
हाल ही खबरो के अनुसार चर्चा में आया है कि अमेरिका में मंदी की भविष्यवाणी दुनिया के अर्थशास्त्री कर चुके है।भारत के पड़ोसी देशों की हालात सबसे ज्यादा खराब है। पाकिस्तान और नेपाल भी आर्थिक संकट से गुजर रहे है। नेपाल के बैकों में खाते खाली है। पाकिस्तान में 6 हफ्ते का मुद्रा भण्डार शेष है। पाकिस्तानी रूपया निचले स्तर पर है। नेपाल में सिर्फ 7 महीने का विदेशी मुद्रा भण्डार बचा है। तो क्या उपरोक्त सब देशों में जैविक खेती की घोषणा हो गई क्या इन देशो में केमिकल फार्मिग या कृषि रसायन पर प्रतिबन्ध है। ऐसा कुछ नही है।

हमें क्या करना होगा ?

किसी देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वहाँ की खेती को स्वावलम्बी बनाना होगा इसके लिए बाजार आधारित उत्पाद से दूरी बनाना कर खेत आधारित व्यवस्था का सर्जन करके जैविक खेती के अभियान को आगे बढाना होगा। हालकिं यह तय है कि इस कार्य से कृषि रसायन निर्माता एवं विक्रताओं के कारोबार कम होगें तो यह सब अपनें लाभ के लिए जैविक खेती के विषय पर जनता को गुमराह करकें विद्रोह शुरू करेगे। सरकार को इस अभियान को बन्द करने के लिए मजबूर करेगे। ऐसे झूठे विद्रोह की असली नब्ज यदि तत्कालीन सरकारें नहीं ढूढ़ं पाती है तो उनके आगे झुकते हुऐ जैविक खेती के विषय को रोककर उक्त रसायन निर्माता एवं विक्रताओं को ही वित्त पोषित करतें हुऐ राष्ट्र को दूषित करेगी इसलिए सभी पाठको से आग्रह है कि किसी भी अफवाह पर ध्यान न देते हुए जैविक खेती से पुण्य कार्य में आत्मविश्वास के साथ लगे रहिए ताकि प्रकृति, पर्यावरण, पेड़ पौधे, पशु पक्षी, के साथ सुक्ष्य से विशालमय जीवो की रक्ष का विषय टिकाऊ रहे।

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