खाद्य सुरक्षा(Food Security) को खतरा नहीं लेकिन किसानों को मिलना चाहिए मुआवजा
केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी ताजा अनुमानों के अनुसार-प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों(Rice Producer States) में खराब बारिश के कारण खरीफ चावल का उत्पादन पिछले साल की तुलना कम होगा। पिछले साल 111 मिलियन टन चावल का उत्पादन हुआ था तो इस साल 104.99 मिलियन टन होने के चांस हैं। जोकि पिछले साल से 6% कम होने की संभावना है। खाद्य सुरक्षा(Food Security) को लेकर चिंता जताई जा रही है |
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सरकारी आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि धान का रकबा पिछले साल के 41.7 मिलियन हेक्टेयर था, जो 2022 में घटकर 39.9 मिलियन हेक्टेयर रह गया है।
स्काईमेट वेदर(Skymet Weather) के उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन) महेश पलावत ने कहा कि- “मानसून ने दक्षिण और मध्य भारत में अतिरिक्त बारिश दी है, जबकि पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में वर्षा की कमी दर्ज की गई है।”
अतः 2022 में चावल के कम उत्पाद का अनुमानित गिरावट गंगा-मैदानों के आसपास कम बारिश होने से प्रभावित हुई है। खासकर जून से अगस्त महीनों में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बारिश बहुत हुई है। जबकि भारत के मध्य क्षेत्र में ज्यादा बारिश ने फसलों को खराब किया है।
दूसरी तरफ राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में देर से बारिश हुई। यहा सितंबर के महीने में बारिश देर से होने के कारण फसलें खराब हो गई। देरी से बारिश के कारण सोयाबीन, मक्का और उड़द की फसलें खऱाब हो गई। बारिश के पानी के कारण कटाई भी देर से हुई और हालांकि यूपी के किसानों को सरसों की बिजाई में मदद भी मिल गई है।
उत्तर प्रदेश में सामान्य से 33% कम बारिश हुई है। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 22 सितंबर को क्रमश: 30%, 20% और 15% वर्षा की कमी दर्ज की गई है। 15 जुलाई तक उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 65%, 42%, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में वर्षा की कमी थी। गुजरात में 1 जून से 31% अधिक वर्षा (685.7 मिमी के सामान्य के मुकाबले 901.2 मिमी) हुई है, जबकि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 26% और 24% अधिक वर्षा हुई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक विनय सहगल ने कहा कि मानसून के बिगड़े हालातों में यह कहा जा सकता है कि हालात पूरी तरह खराब नहीं हैं यानी खाद्य सुरक्षा(Food Security) की स्थिति को लेकर स्थिति खतरनाक नहीं है, क्योंकि मानसून सीजन की देरी से आईजीपी की रिकवरी में मदद मिलेगी। हालांकि चावल के उत्पादन में 4% की कमी जरूर रहने की संभावना है। जबकि मध्य और दक्षिण भारत से मिल रही रिपोर्टों के अध्ययन के बाद यह कहा जा सकता है कि स्थिति अधिक खराब नहीं है या नुकसान ज्यादा नहीं होगा।
वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, “मुद्रास्फीति(Inflation) के मामले में ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि सरकार ने पहले ही निवारक कदम उठाए हैं।” इस महीने की शुरुआत में, केंद्र ने कीमतों में वृद्धि को झंडी दिखाते हुए टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। घरेलू आवश्यकताओं और निर्यात में “असामान्य” वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं बिना उबले चावल को छोड़कर सभी गैर-बासमती चावल पर 20% निर्यात शुल्क लगाया था। भारत द्वारा टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध, यूक्रेन युद्ध और पाकिस्तान में बाढ़ के कारण धान की फसलों को भारी नुकसान के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चावल की कीमतें बढ़ने की संभावना है।
सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक डॉ. जी. वी. रामंजनेयुलु के अनुसार- कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और भारत के पास पर्याप्त स्टॉक है। इसलिए, राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा(Food Security) और मुद्रास्फीति(Inflation) के मामले में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, यह निश्चित तौर किसानों के काफी नुकसानदायक रहेगा।
किसानों को खराब फसलों के हुए नुकसान की भरपाई के लिए अल्पकालिक समाधान यह है कि उनके नुकसान को या तो फसल बीमा(Fasal Bima) या आपदा मुआवजे के माध्यम से अनिवार्य रूप से कवर किया जा सकता है।
दूसरी तरफ एक तथ्य यह भी है कि भारत में केवल 30 % किसानों ने अपनी फसलों का बीमा(Fasal Bima) किया है। राज्य सरकारें उन्हें मुआवजा(Muawja) देने से इनकार करती रही हैं। अगर वे करते भी हैं, तो उन्हें नुकसान का आकलन करने और भुगतान करने में बहुत समय लगता है।
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खाद्य सुरक्षा(Food Security) को लेकर विशेषज्ञों ने अलग अलग राय दी है। खाद्य और व्यापार नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा(Devender Sharma) ने कहा कि भारत के पास पर्याप्त खाद्यान्न भंडार हैं और चावल के उत्पादन में 6% की गिरावट आने पर भी घबराने की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि दुःखद बात यह है कि सभी को महंगाई की चिंता है, किसानों की नहीं।
खाद्य सुरक्षा(Food Security) भले ही प्रभावित नहीं हुई है परन्तु “पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में चावल(Rice) के उत्पादन पर प्रभाव का मतलब है कि लगभग 30 करोड़ किसान प्रभावित हुए हैं, लेकिन कोई भी उनके बारे में बात नहीं कर रहा है। सरकार को प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। अगर यह कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए किया जा सकता है, तो यह किसानों के लिए भी किया जा सकता है। बाजार को विनियमित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा: “चावल की कीमतें तब भी बढ़ी हैं, जब हमारे पास 4 करोड़ टन अतिरिक्त चावल है।”