पागल कहे जाने वाले किसानों को खस की खेती ने बना दिया खास

खस की खेती बनी किसान के लिए वरदान

आज भी विश्व भर में खेती के दो पैटर्न पर खेती हो रही है, जिसमें बड़ी संख्या में किसान पारंपरिक खेती करना ही पसंद करते हैं, जबकि कुछ किसान लीक से हटकर अलग तरह की, तकनीक की सहायता और मार्केट की समझ को ध्यान में रखकर खेती करते हैं। इन्हें आधुनिक या प्रगतिशील किसान कहा जाता है। आज हम इस लेख में खस की खेती किस तरह की जाती है और वो खेती पारंपरिक खेती से किस तरह अलग है तथा कौन-सी मिट्टी व तकनीक इस खेती में इस्तेमाल की जाती है।

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इसके अलावा इस खस की खेती का मार्केट वैल्यू क्या है? बाजार में इस समय खस भाव क्या चल रहा है? खस की खेती में लागत कितनी आती है। खस की खेती में कौन-सी तकनीक इस्तेमाल होती है? कहां के किसान खस की खेती को कैसे कर सकते हैं? खस की खेती में प्रति एकड़ कितनी कमाई होती है? खस की खेती की ट्रेनिंग कहां से ले सकते हैं? खस का पौधा कहां पाया जाता है? खस घास कहां पाई जाती है? खसखस का दूसरा नाम क्या है? खसखस कितने रुपए किलो मिलता है? क्या खसखस में नशा होता है?
खसखस का दूसरा नाम क्या है?

इसका वानस्पतिक नाम वेटिवेरिया ज़िज़नियोइडिस होता है। वैसे तो ज्यादातर जगहों में ये खसखस नाम से ही प्रचलित है, लेकिन अंग्रेजी में ये खस खस या वेटियर ग्रास (Vetiver grass) , हिन्दी में खस या खसखस , कन्नड़ में मुडिवाल, तमिल में उशीरम, बंगाल में वेणर मूल, आदि कई नामों से जाना जाता है। खस घास की खेती सरल है और मार्केट में अच्छी डिमांड भी है। खस की फसल से आप कितनी कमाई कर सकते हैं और इसकी फसल कैसे लगायें, आगे पढ़ें पूरी जानकारी।

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कररिया गोपालगंज के मेघराज प्रसाद

कररिया (गोपालगंज) मेघराज प्रसाद ने पारंपरिक खेती की जगह की खस की खेती को अपनाया और उसके बाद मेघराज ने इस औषधीय खेती को अपने जीवन-यापन का मुख्य साधन बना लिया। शुरूआत एक बीघा से करके मेघराज आज के समय में 20 एकड़ में खस की खेती कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर खस की खेती से मुनाफा कमाने के लिए वीडियो आदि देखने के बाद मेघराज के मन में खस की खेती को लेकर जिज्ञासा जागने लगी और उन्होंने खस की खेती से जुड़ी छोटी-बड़ी सभी जानकारियां जुटानी शुरू की। उसके बाद उन्होंने लखनऊ सीमैप रिसर्च सेंटर में ट्रेनिंग से बाकायदा ट्रेनिंग ली और उसके बाद खस की खेती करनी शुरू की। मेघराज बताते हैं कि उन्होंने खस के 10 हजार बीजों से खेती शुरू की थी, उन्हें वो बीज उस समय 20 हजार पड़े थे। उन्होंने जब खस की खेती करनी शुरू की तो आसपास के लोग उन्हें पागल कहने लगे थे। लोग कहते थे कि कैसा पागल है धान व गेहूं की खेती छोड़कर घास की खेती कर रहा है। अब जब उन्हें यह घास की खेती मुनाफा दे रही है तो उनसे प्रेरणा लेकर आसपास के दूसरे किसान भी अब खस की खेती करने लगे हैं।

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खस की खेती की खासियत

खस की खेती की खासियत यह है कि इस खेती में अवारा पशुओं द्वारा नुकसान करने का डर नहीं रहता है और न ही अधिक बारिश में खस की खेती खराब होती है। खस की खेती को सूखा पड़ने पर भी नुकसान नहीं होता है। खस की खेती शून्य से लेकर 56 डिग्री तापमान में आसानी से उग जाती है। खस की खेती में खस की जड़ से जो सुंगधित तेल निकलता है, उसका बाजार भाव काफी अच्छा है, जिसके कारण खस की खेती मुनाफे की खेती कही जा सकती है। दरअसल खस का तेल सुंगधित प्रसाधनों में इस्तेमाल किया जाता है, खासकर साबुन एवं इस्त्र आदि में। जिसके कारण इसका मार्केट भाव काफी अच्छा है। एक रिपोर्ट के अनुसार- विश्व में प्रति साल करीब 300 टन तेल की मांग है, जबकि भारत में महज 125 टन के करीब उत्पादन हो रहा है। इसका सीधा अर्थ यह है कि इसमें आर्थिक तौर पर मुनाफा कमाने की काफी संभावनाएं हैं। खासकर वहां जहां किसानों की जमीन पानी और मौसम के कारण खाली पड़ी रहती हैं।

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पारंपरिक और आधुनिक खेती में लागत का अंतर

पारंपरिक खेती करने वाले किसान दरअसल किसी नई प्रकार की खेती करने की तरफ बढ़ने से कईं कारणों की वजह से डरता है। पहला यह है कि किसानों को नई फसल के बारे में विस्तार से कहीं भी सटीक एवं प्रामाणिक जानकारियां नहीं मिलती। दूसरा अमूमन पारंपरिक खेती से आधुनिक खेती में लागत ज्यादा होती है। तीसरा मार्केट में उनकी फसल कहां बिकेगी और कौन खरीदेगा, जैसे सवाल साधारण किसानों को परेशान करते हैं। इसलिए किसान पारंपरिक खेती से आधुनिक खेती की तरफ शिफ्ट होने में घबराते हैं। सबसे अहम् बात यह भी है कि उनके जीवन के अनुभवों में पारंपरिक खेती के खतरे एवं निवारण उन्हें पता होते हैं, इसलिए भी किसान आधुनिक खेती करने का रिस्क नहीं ले पाते। वरना मुनाफा किसी को बुरा नहीं लगता। मेहनत किसानों को पारंपरिक खेती में भी करनी है और आधुनिक खेती में भी करनी है।

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एरोमा मिशन : केंद्र सरकार का खस की खेती से जुड़ा मिशन

खस को अंग्रेजी में इसे वेटिवर कहते हैं। खस एक ऐसी फसल है जिसका प्रत्येक भाग (जड़-पुआल,) फूल आर्थिक रूप से उपयोगी होता है। खस की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने एरोमा मिशन पूरे मुल्क में शुरू किया है। खस की खेती हर तरह की मिट्टी और मौसम में हो सकती है। एरोमा मिशन की पूरी जिम्मेदारी लखनऊ स्थित सीएसआईआर (CSIR) की लैब केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (CIMAP- Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants) सीमैप को सौंपी गई है।

एरोमा योजना के मुख्य काम

  • किसानों को प्लांटिंग मैटेरियल (स्लिप) से लेकर तकनीकी सहायता
  • प्रोसेसिंग (तेल निकालने) और उसकी मार्केटिंग तक की व्यवस्था
  • किसानों को डिस्ट्रीलेशन यूनिट की सुविधा
  • गुणवत्ता वाला तेल कैसे निकाला जाता

-तेल बेचने के लिए उद्योगों से बातचीत में अहम् भूमिका निभाना
सीमैप के निदेशक प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी बताते हैं, एरोमा मिशन के तहत किसानों को खस के कल्टीवेशन (खेती) से लेकर मार्केटिंग कर पूरी जानकारी और सुविधाएं मुहैया कराई जाती है। सरकार की कोशिश है कि सुगंध पौधों के द्वारा किसानों की आमदनी को बढ़ाया जाए।

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बुलेंदखंड में किसान कर रहे हैं खस की खेती

यूं तो देश भर के कई राज्यों में खस की खेती की तरफ किसानों का रूझान बढ़ रहा है। उसके साथ-साथ बुंदेलखंड में भी खस की खेती को बड़े पैमाने पर किसान करने लगे हैं। क्योंकि बुंदेलखंड में पानी की किल्लत तो है ही, साथ में अन्ना प्रथा (छुट्टा जानवर) भी किसानों के लिए आफत बने हुए हैं। जिसके कारण खस की खेती की तरफ किसानों का नजरिया बदल रहा है।

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खस की उन्नत किस्म

-6 महीने और 18 महीने में तैयार होने वाली किस्में हैं
-18 महीने वाली से अमूमन 10 किलो तेल निकलता है
-1 साल वाली किस्म से करीब 8 किलो तेल निकलता है
-महीने वाली किस्म से 5 किलो के करीब निकलता है
खस विशेषज्ञ और सीमैप में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेश वर्मा के अनुसार- “सीमैप ने खस की कई उन्नत किस्मे विकसित की हैं। अगर किसान इसके साथ सहफसली करते हैं तो मुनाफा और बढ़ जाता है।’

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खस का कहां-कहां होता है इस्तेमाल

कूलर की घास के तौर पर खस की जड़ों का इस्तेमाल होता है

Grass of Khas

-हस्तशिल्प में भी जड़ों का प्रयोग किया जाता है
-खस के तेल का प्रयोग दवाई में होता है
-खस के तेल का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधनों में सुंगध के लिए किया जाता है

खस की खेती का समय और बुआई

-सबसे उपयुक्त समय- फरवरी और जुलाई
-खुदाई- किसान ने किस किस्म को खेत में लगाया है, खुदाई इस बात पर निर्भर करता है। खस की उन्नत किस्मों में 6 महीने से लेकर 18 महीनों तक की किस्में है। खस की जड़ों को खोदकर कर उनकी पेराई की जाती है।
-एक एकड़ ख़स की खेती से करीब 6 से 10 किलो तेल मिल जाता है यानि हेक्टेयर में 15-25 किलो तक तेल मिल सकता है।

केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान द्वारा तैयार की गई किस्में

केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (CIMAP- Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants) सीमैप द्वारा खस की उन्नत किस्में जैसे KS -1, KS-2, CIMAP खस-22,सीमैप खस-15, धारिणी, केशरी, गुलाबी, सिम-वृद्धि, सीमैप खुसनालिका तथा सीमैप समृद्धि हैं।

खस की खेती कैसे करें

-ख़स ज्यादातर स्लिप द्वारा ही लगायी जाती है।
-प्रत्येक कलम (स्लिप) भूमि की सतह से 3 -4 इंच गहरी लगायी जाती है।
-मिट्टी सरंक्षण के लिए : 30-30cm, नदी क्षेत्रों में 45-30cm व नम-उपजाऊ भूमि में 60-30cm की लाइन में पौध लगाई जाती है।

खस की खेती लागत और मुनाफा

वैसे तो हर खेती की लागत और मुनाफा समय के साथ बदलते रहते हैं, क्योंकि किसी साल लागत ज्यादा बढ़ जाती है तो किसी साल भाव अच्छा मिल जाता है। इसलिए लागत और मुनाफा को एक मोटा-मोटी खाका हम पेश कर रहे हैं-
-सिंचित व उपजाऊ मिट्टी में 1 लाख लागत से 3.50 लाख का मनाफा (प्रति हेकटेयर)
-नदी के आसपास के क्षेत्र में 1 लाख की लागत से करीब 2 लाख का मुनाफा (प्रति हेकटेयर)
-ठंड के मौसम को छोड़कर इसकी खेती किसी भी समय कर सकते हैं। कम देखभाल और कम लागत में यह फसल बंपर मुनाफा देती है।
-काटे गए ऊपरी भाग चारे के काम में आ जाते हैं
-कुछ किसानों काटे गए ऊपरी भाग का झोपड़ी बनाने एवं ईंधन में भी इस्तेमाल करते हैं।

खस के किसान के अनुभव

25 एकड़ में खस की खेती करने वाले आलोक पांडे बताते हैं कि सीमैप को हारवोस्टिंग करने के लिए कुछ ऐसा यंत्र तैयार करना चाहिए जिससे आसानी से इसकी गुड़ाई हो सके और दूसरा यंत्र मूंजड़ अलग करने के लिए बनाया जाना चाहिए, ताकि जड़े को सही तरीके से अलग किया जा सके।

पर्यावरण और सेल टैक्स के अधिकारी करते हैं किसानों को परेशान

खस की खेती करने वाले आलोक पांडे बताते हैं कि सीमैप द्वारा तेल बनाने की तकनीक अब काफी पुरानी हो चुकी है। जिसमें 70 से लेकर 100 घंटे का समय लगता है। ज्यादा मात्रा में खस की खेती करने वाले किसानों को अपनी फसल बॉयलर से निकलवाने के लिए फसल दूसरी जगह लेकर जानी पड़ती है, क्योंकि बॉयलर से यह काम जल्दी हो जाता है। जब हम अपनी फसल को लेकर एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं तो फोरस्ट एवं सेल टैक्स के अधिकारी किसानों को परेशान करती हैं। हमारी सरकार से यही मांग है कि वो अधिकारियों को सख्त निर्देश दें कि किसानों को परेशान न किया जाए।

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