साल 1963 में जोरहाट आसाम में जन्मे जादव मोलाई पाऐंग आजकल भारत में फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया के नाम से जो पहचान रखते हैं| साल 2015 में पदमश्री से सम्मानित हुए जादव मोलाई पाऐंग को साल 2012 से पहले कोई नहीं जानता था गौरतलब बात जय है कि जादव पाऐंग साल 1979 से चुपचाप एकचित होकर काम में लगे हुए हैं|
भयंकर बाढ़ से सामना
साल 1979 में आसाम में ब्रहमपुत्र नदी में भयंकर बाढ़ आई थी और उस समय जादव 16 साल के युवा थे और उस बाढ़ में अनगिनत सांपों की मृत्यु हुई सांपों के मृत शरीर नदी का पानी उतर जाने के बाद पूरे इलाके में बिखरे पड़े थे | इस खौफनाक मंजर को देखकर जादव पाऐंग का बाल मन व्यथित हो उठा
जादव ने अपने बड़े बुजुर्गों से इसकी चर्चा की तो उसे पता चला कि नदी के किनारे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की वजह से नदी के किनारों का वन क्षेत्र नष्ट हो गया है जिसके कारण अचानक बाढ़ आने की स्थिति में सांप पेड़ों पर शरण नही ले सके और पानी में डूब कर मारे गये |
खुदगब्बरी का विचार
जादव पाऐंग को जब समस्या समझ में आ गयी तो उसने किसी से मदद मांगने की बजाए खुद ही एक्शन लेने का मन बना लिया और ब्रहमपुत्र के रेतीले किनारे का चुनाव करके वहां बांस के बीस पौधे रोपित कर दिए और उनकी देख भाल चालू कर दी |
परमात्मा की मदद
एक बात अक्सर सुनने और देखने में आती है कि जब कोई पवित्र आत्मा कुदरत के सुर में गाता है तो उसकी मदद कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में परमात्मा भेजता ही है | बस ऐसा ही कुछ जादव के साथ भी हुआ | साल 1979 में जोरहाट जिले में गोलाघाट फारेस्ट डिविजन नें सोशल फॉरेस्ट्री योजना के तहत 200 हेक्टेयर क्षेत्र में वनरोपण योजना की शुरुआत की और जादव को बतौर मजदूर इस प्रोजेक्ट में नौकरी मिल गयी | जादव खूब मन लगाकर काम सीखने लगा और काम को करने लगा | उसके साथ काम कर चुके लोग अतीत याद करके बताते हैं कि जादव ने कभी भी घड़ी देख कर काम नही क्या वो बस काम ही काम करता था पूरे आनंद के साथ |
अंतरात्मा की आवाज
प्रोजेक्ट के पांच साल कब बीत गये किसी को पता ही नही चला अब जंगल उभरने लगा था तो सरकार ने प्रोजेक्ट बंद कर दिया और पूरे स्टाफ की छुट्टी कर दी | कायदे से तो जादव को भी दूसरे मजदूरों की तरह काम की तलाश में कहीं ओर निकल जाना चाहिए था लेकिन जादव की अंतरात्मा ने कहा कि यदि अब इस मुकाम पर उभरते हुए जंगल को छोड़ दिया तो सब बर्बाद हो जाएगा | जादव ने वहीँ जंगल में ही अपनी कुटिया डाल ली और रहने लगा |
मोलाई जंगल का नामकरण
जादव मोलाई पायेंग न सिर्फ 200 हेक्टेयर जंगल की देखभाल कर रहा था अपितु खाली पड़ी जमीन पर नया जंगल भी लगा रहा था | उसकी यह निष्काम निष्ठा और लगन को देख कर आसपास रहने वाले और गुजरने वाले लोगों ने इस नये जंगल को मोलाई जंगल कह कर संबोधित करना शुरू कर दिया | जादव पायेंग बिना किसी चक्कर में पड़े चुपचाप अपना अकाम करते रहे |
कुदरत का जवाब
मोलाई जंगल में कुछ समय के बाद ही बंगाल टाइगर, गैंडे, खरगोशों और हिरणों की 100 से अधिक प्रजातियों ने अपना घर बना लिया धीरे-धीरे बंदर, सैकड़ों किस्म के पक्षी जिसमें गिद्ध भी शामिल थे रहने के लिए यहां वहां से आ गए| इस नये उभरे जंगल में केवल बांस बांस ही 300 हेक्टेयर क्षेत्र पनप रहा था | इसके अलावा अर्जुन (Terminalia arjuna) , ऐजार (Lagerstroemia speciosa) , गोल्ड मोहर (Delonix regia) , कोरोई (Albizia procera), मौज (Archdendron bigeminum) , और हिमालू (Bombax ceiba) के भी हज़ारों पेड़ हैं | इस जंगल में पिछले कुछ समय से लगभग 100 हाथियों का एक दल आ कर रहने लगा है जो लगभग 6 महीने इसी जंगल में बिताता है | इस दल में पिछले कुछ सालों में 10 नये बच्चों ने भी जन्म लिया है |
घर संसार
जादव बताते हैं कि उनकी पत्नी का नाम बिनीता है और घर में तीन बच्चे है एक बिटिया और दो बेटे | बिटिया का नाम मुमुनि है और बेटे संजय और संजीव हैं | जम सभी जंगल में अपनी पारम्परिक कुटिया बना कर रहते हैं और आजीविका के लिए पशुपालन करते हैं | दूध बेच कर गुजारे लायक धन मिल जाता है और बाकी आवश्यकताओं की पूर्ती हेतु जंगल है ही |
पहचान और सम्मान
जादव मोलाई पायेंग की कहानी दुनिया के सामने साल 2009 में उस समय आई जब जीतू कलिता नामक एक वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर ने इस इलाके का भ्रमण किया तो उसे इतना घना जंगल देख कर आश्चर्य हुआ तो उसने स्थानीय लोगों से पूछताछ और जादव पायेंग की कहानी स्थाने अखबारों में छपी बस फिर धीरे धीरे बात दिल्ली तक जा पहुंची | जीतू कलीता ने मोलाई फारेस्ट के नाम से एक फिल्म भी बनाई जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं | साल 2012 में जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय के स्कूल ऑफ़ एनवायरमेंट ने जादव पायेंग को दिल्ली बुलवाया और उन्हें सम्मनित किया | असाम कृषि विश्वविधालय और काजीरंगा विश्वविधालय ने जादव मोलाई पायेंग को मानद उपाधियों से भी सम्मानित किया और साल 2015 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखेर्जी जी ने पदमश्री से अलंकृत किया |
सीख
हमें जादव मोलाई पायेंग की जवान गाथा से यह सीख मिलती है कि हमें परिणाम की चिंता किये बगैर अपने अंदर की आवाज को सुनना चहिये और ज्यादा गुणा भाग जमा घटा किये जीवन में सीधे सीधे चलते रहना चाहिए | सारे पुरस्कार मान सम्मान बंदे का पता ढूंढते ढूंढते उसके घर के दरवाजे तक आ जाते हैं | मैं ऐसे कितने ही लोगों को जानता हूँ जो पिछले दस सालों से पद्मश्री लेने के लिये ही चिन्तन में डूबे हुए हैं लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से उनका नाम फिसल जाता है और जिसकी वजह से उनके जीवन का आनन्द गवाचा हुआ है |