एक किसान कि दिल दहला देने वाली दुर्घटना
राजस्थान के बूंदी में गत 14 मई को अक्षयतृतीया जिसे स्थानीय बोली में आखा तीज भी बोल देते हैं को कापरेन क्षेत्र के अडीला गाँव में किसान बृजमोहन मीणा जी के घर पर बिटिया की शादी थी और करोना गाइडलाइन्स के मुताबक ही सारे कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा था |
इसी बीच गाँव में करोना गाइडलाइन्स के कानूनी अनुपालन की जिम्मेदारी संभाले क्षेत्र में तैनात एस.डी.एम. महोदय एच.डी.सिंह का आगमन होता है और गाँव में यह बात खबर की तरह ही फ़ैल जाती है और लोग एस.डी.एम. को देखने उत्सुकतावश किसान बृजमोहन मीणा के घर की ओर चल देते हैं और वहां अच्छी ख़ासी भीड़ जमा हो जाती है |
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अब वहां में ऐसा लगने लगता है कि सभी लोग विवाह समारोह में ही आये हुए हैं , एस.डी.एम. महोदय के अंदर का अफसर जाग जाता है और वहां एक आदेश के साथ विडियोग्राफी चालू हो जाती है | इससे पहले कोई कुछ समझ पाए उपखंड प्रशासन के मुखिया एस डी एम सीधे एक लाख रुपये का चालान काट कर किसान बृजमोहन मीणा के मुहं पर मार देते हैं |
बिटिया की शादी में अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च कर रहे किसान बृजमोहन मीणा की समझ में नही आता कि वो क्या करे | विवाह समारोह का तो नास हो ही जाता है और वहां समारोह में शामिल हरेक व्यक्ति के मन में जीवन में कभी ना भरे जा सकने वाला घाव लग जाता है |
गाँव के कुछ तमाशबीनों का छोड़ दें बाकी सारा गाँव एक सदमे में आ जाता है | एस डी एम के मौके से चालान काट कर चले जाने के बाद अगले दिन से किसान बृजमोहन मीणा के उपर एक लाख रुपये जमा कराने का दबाव बनाया जाने लगता है |
किसान ने जमीन गिरवी रख कर आये एक लाख रुपये
किसान के परिवार में बिटिया की शादी कैसे की जाती है इस बात से अनजान एस. डी.एम. महोदय ने किसान बृजमोहन मीणा पर कानूनी दबाव बनाना शुरू कर दिया तो ऐसे में किसान के पास बस जो एक मात्र उपाय होता है कि वो अपनी जमीन गिरवी रख दे और कैसे भी करके मुसीबत को टाल दे |
बस किसान बृजमोहन मीणा ने भी यही किया और अपनी जमीन गिरवी रख कर उपखंड कार्यालय में एक लाख रुपये चालान के तौर पर 17 मई को जमा करवा आये | अब 59 साल के किसान बृजमोहन मीणा जो समाजिक अपमान से पहले से ही टूटे हुए थे और इस आर्थिक बोझ ने उनको अंदर से तोड़ दिया |
20 मई की सुबह अपमान का घूँट पिए हुए स्वाभिमानी किसान बृजमोहन मीणा ने अपना शरीर त्याग दिया और परिवार के सर से मुखिया का साया उठ गया और एक परिवार पूरी तराह से बर्बाद हो गया |
इस किसान पर टूटा दुखों का पहाड़
परिवार में पीछे रह गये किसान बृजमोहन मीणा की पत्नी श्रीमती पांची बाई और बेटा दीपक रह गये हैं जमीन हाथ से समझ लो निकल ही गयी क्यूंकि जमीन छुड़ाने के लिए एक लाख रुपये का बंदोबस्त होने का कोई सवाल ही पैदा नही होता है | घर के मुखिया का साया सर से उठ जाने के बाद यह किसान परिवार बेहद मुश्किलों में घिरा महसूस कर रहा है |
प्रशासनिक जुल्म का शिकार यह परिवार अब उलटे प्रशासन से ही आर्थिक मदद की गुहार लगा रहा है | इसी दिशा में श्रीमती पांचीबाई ने कलेक्टर कापरेन के नाम थानाधिकारी हरलाल मीणा के मार्फ़त एक निवेदन भी दिया है |
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घटनाक्रम से निकले सवाल
इस जघन्य दुर्घटना के बाद अखबार में एस.डी.एम. एच.डी.सिंह का ब्यान अखबार में छपा है जिसमें उसने कहा है कि जो भी कारवाई की गयी है वो करोना गाइडलाइन्स के मुताबिक़ की गयी है और इस मौके पर डी.एस.पी. और नगरपालिका के ई.ओ. भी मौजूद थे |
ठीक है मौके पर अन्य अधिकारी भी थे लेकिन क्या वे जी सर के अलावा कुछ बोलने की स्थिति थे, बिलकुल भी नही क्यूंकि नगर पालिका का ई.ओ. तो एस. डी.एम. एक आगे कश्मीर से कन्याकुमारी तक चूं भी करता किसी ने आज तक न देखा और सुना | रही बात डी.एस.पी. की उसे साधारण किसान से भला क्या लेना देना कोई नेता अधिकारी का मामला होता तो प्रोटोकोल लगाने की ड्यूटी किसकी होती है यह बात किसी से छिपी नही है |
किसान के लिए जिसके घर में बिटिया की शादी हो उसके लिए एक लाख रुपये कितने मायने रखते हैं यह बात यदि देश में जनता के टैक्स पर पल रहे अधिकारियों की समझ में नही आ रही है तो इसका सीधा अर्थ यह है कि प्रशासनिक रूप से हम अभी तक कोलोनियल युग में ही धंसे पड़े हैं |
प्रशासनिक अधिकारियों को विवेकाधिकार के तौर पर बहुत सारी शक्तियां दी गयी हैं जिनका प्रयोग यदि वो अपना रौब झाड़ने की बजाए लोगों को प्यार से समझाने में करें तो यह देश वो देश है जो मर्यादा पर चलने के लिए सदियों से प्रोग्राम्ड है |
मर्यादा और कानून
हमारा देश और समाज और हमारे घर क्या कानून से चलते हैं : जवाब है नही | हमारे घर आज भी मर्यादायों पर चलते हैं | पितापुत्र भाई बहिन पति पत्नी , ससुर दामाद , जीजा साला , आस पड़ोस गली मोहल्ला सारे सम्बन्ध आज भी मर्यादाओं पर चलते हैं इसी लिए कायम हैं | इनमें जैसे जैसे कानून घुसेडा जाएगा संबंधों में रूखापन आने लगेगा और समाज में भंड हो जाएगी |
कानून को लागू में समझ और विवेक न हो तो पीड़ित बर्बाद हो जाते हैं जैसे इस एच डी सिंह ने किसान बृजमोहन मीणा के परिवार को कानून के तहत प्रदत शक्तियों से बर्बाद कर दिया और उसे इस बर्बादी का न कोई आईडिया है और न कोई तकलीफ |
अभी थोड़े दिन पहले एस.डी.एम. पिंकी मीणा चर्चा में थी जो लाखों रुपये की रिश्वत वसूलते हुए रंगेहाथों सबके सामने धरी गयी थी | इनके लिए एक लाख रुपये क्या होता है ? शायद मूंगफली के दानों से अधिक कुछ भी नही | लेकिन एक साधारण किसान के लिए एक लाख रुपये कितने होते हैं इस बात का परिमाण लगाने के लिए देश को अपने आप को पूरी तरह से बदलना होगा |
हमारा देश मर्यादाओं पर चलने के लिए शुरू से प्रोग्राम्ड है हम अपने राजा में भगवान् की छवि देखने का जतन करते हैं | हमें महाराजा रणजीत सिंह जी जैसे राजा भाते हैं जो जनता से पत्थर खाने के बावजूद भी जब घटना का इंटरप्रेटेशन करते हैं तो कहते हैं कि माई ने बेर तोड़ने के लिए पत्थर मारा था और वो मुझे लग गया | पेड़ को लग जाता तो वो बेर देता लेकिन वो मुझे लगा है तो मई क्या दूं | इतना बुरा मैं भी नही हूँ के माई को दंड दूं| राजा रणजीत सिंह जी माई को बुलाया और उसे राशन देकर विदा किया | ऐसे ही लोग आज अपने राजा को महाराजा कह कर याद नही करते एस.डी.एम. महोदय|
मसले का संभावित हल
इंसान की जान वापिस लाने के अलावा हरेक दुनियावी मसले का हल निकल सकता है | एस.डी.एम. ने जो यह खराबा किया है वो कानूनी और प्रशासनिक विवेचनाओं के अनुसार बेशक सही हो लेकिन मानवीय आधार पर पूरी तरह से गलत है |
एस.डी.एम. को तुरंत जाकर पांची देवी से माफ़ी मांगनी चाहिए और एक लाख रूपए देकर जमीन को छुडवा कर परिवार को वापिस लौटना चाहिए और परिवार की अपने जीते जी हर संभव मदद करनी चाहिए परिवार का सदस्य बन कर | तब स्थापित होंगी मर्यदाये | राजा दशरथ से भी नदी पर जल भरने आये अंधे मां बाप के बेटे श्रवण कुमार का कत्ल हो गया था | फिर भी राजा दशरथ जल का लौटा लेकर श्रवण कुमार के अंधे मां बाप तक पहुंचे और उन्हें अपने द्वारा किये गये पाप से अवगत कराया |
उस समय जब यह घटना घटी तो दशरथ के कोई संतान नही थी लेकिन श्रवण कुमार के अंधे मां बाप ने यह श्राप दिया कि राजा जा तू भी अपने अच्छों के वियोग में तडप तडप कर मरेगा | राजा को एक बार तो बहुत दुःख हुआ लेकिन फिर उसके समझ में एक बात आई के इस श्राप के फलित होने में उसको संतान सुख तो पक्का मिलेगा ही |
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आगे क्या हुआ सब जानते ही हैं | यह देश मर्यादाओं पर कैसे चले इसके लिए कानून बनाने से उपर मर्यादाएं स्थापित करने वाली संस्थाएं खड़ी करनी पड़ेंगी और वो संस्थाये इस देश का एक एक आदमी है एक एक अधिकारी है एक एक अफसर है | हमें अपने देश में अधिकारियों अफसरों के रूप में ऐसे मानव संसाधन की दरकार है जो देशवासियों में खुद्दारी समझ और स्वाभिमान पैदा कर सके | यह सिर्फ तभी सम्भव है जब एच डी सिंह जैसे अधिकारी मौके पर ऐसा व्यवहार दिखाएँ कि यदि कोई छोटी मोटी उलंघना भी हो रही है तो किसान जो इस वक़्त बिटिया का बाप है और पूरी बरात के सामने एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह से खड़ा है उसको कुछ सहारा लगे और काम भी निबट जाए |
इसी में सभी की वाह वाही है |