महक सिंह तरार, चेयरमैन आदर्श पशुपालक सोसाइटी (रजि.)
क्या आप जानते है कि टोंड दूध से नेचुरल दूध पीना ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक है?
1920 से पहले तक कोई स्किम्ड मिल्क (टोंड दूध) नही पीता था। ये फैट/बटर बनाने के बाद बचा हुआ सफेद पदार्थ नदी नालों मे बहा दिया जाता था। सिर्फ संयुक्त राज्य अमरीका स्थित विस्कोंसिन राज्य के डेरी वाले करीब 20 हजार लीटर टोंड दूध नदी मे बहाकर उसमे बदबू पैदा करते थे। जब सरकार ने उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही स्टार्ट की तो दूध कंपनियो ने इसे स्वास्थ्य के लिए अच्छा बताकर बेहद सस्ते दामो मे बेचना स्टार्ट किया।
दूध में विटामिन ए, डी और ई होते है जो मिल्क फैट मे घुलनशील होते है। दूध के अंदर मौजूद पोषक तत्वों के आंतो मे सही से अवशोषित होने के लिए नेचुरल मिल्क फैट की मौजूदगी अच्छी होती है। वैसे भी नेचुरल दूध के अंदर वाला मिल्क फैट मन और शरीर को संतुष्टि और तृप्ति देने वाला होता है|
शरीरक्रिया विज्ञान का सिद्दांत है कि यदि आपके कोई भी तत्व शरीर की जरूरत से ज्यादा जाएगा तो आपको खुद ही खराब लगने लगेगा और अरुचि उत्त्पन्न होने की वजह से अपने आप ही उसे खाना रोक देंगे। दूध का फैट (देशी घी) तेल की तरह नही होता जिसकी संतुष्टि पता नही लगती भले बाद मे तेल खाने वाला परेशान होता घूमे।
भारत में टोंड दूध
भारत मे भी दूध कंपनियो ने अमेरिका की देखा देखी टोंड दूध बेचने स्टार्ट किया। टोंड दूध पीने से फैट मे घुलनशील विटामिन की कमी होना लाजिमी थी। इसलिये बड़े स्तर पर विटामिन ए की कमी से होने वाले रतोंधी जैसे रोग बढ़ने लगे। 2019 मे बच्चो पर किये गए Comprehensive National Nutrition Survey मे पता लगा कि अलग अलग आयु वर्ग मे विटामिन ए की कमी 14% से लेकर 26% तक है।
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ऐसी स्थिति में भी सरकारों ने टोंड दूध बनाना बंद करने के बजाये उसमे बाहर से रेटिनॉल/Palmitate व Vit D मिलाना शुरू कर दिया जिस प्रक्रिया को फोर्टीफिकेशन (सुदृढ़ीकरण) कहते है।
क्या आप जानते है नेचुरल फ्रेश दूध एकमात्र सम्पूर्ण आहार है जिसमे विटामिन सी के अलावा सभी 9 तरह के एमिनो एसिड, कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, फैट, मिनरल्स मतलब जीवन के लिए सभी जरूरी तत्व पाये जाते है। आज स्थिति यह हो चुकी है कि नेचुरल के बजाये भारत मे भी 44% दूध फोर्टीफाईड बिकता है।
मैं नही जानता कि किस के दबाव में या सलाह से व्यवस्था अब रेगुलर नेचुरल दूध को भी फोर्टीफाईड करना चाहती है। मतलब पहले लोगो को प्रोसेस्ड चीजे खिला पिला कर बीमारी पैदा करो फिर बड़े बड़े व्यापारियों को उसके समाधान का ठेका दे दो।
जितनी ज्यादा बीमारी बढ़ेगी तो Sick Care यानी हॉस्पिटल मे पैसा आएगा तो जी.डी.पी. बढ़ेगी। वैसे भी अमेरिका जैसे हमारे से #पांच गुणी बड़ी इकॉनमी का हमारे से #चौथाई जनसंख्या के लिए
जितनी ज्यादा बीमारी बढ़ेगी तो Sick Care यानी हॉस्पिटल मे पैसा आएगा तो जी.डी.पी. बढ़ेगी। वैसे भी अमेरिका जैसे हमारे से #पांच गुणी बड़ी इकॉनमी का हमारे से #चौथाई जनसंख्या के लिए जी.डी.पी. का #17% खर्च है जबकि हम उनसे मात्र 1/5 इकोनॉमी मे #पांच गुणी आबादी को मात्र जी.डी.पी. का डेढ़ प्रतिशत खर्च करते है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का इस कदर बुरा हाल है कि 223846 करोड़ के हेल्थ केयर सेक्टर का दो तिहाई (डेढ लाख करोड़) भारतीय नागरिक अपनी जेब से भरते है, जिसमे झोला छाप डॉक्टर्स या वैध वगैरा के आंकड़े शामिल नही है।
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अब FSSAI टोटल (नेचुरल ताजा दूध भी) दूध के फोर्टीफिकेशन करने के लिए पिछले साल से जरूरी गाइड लाइन्स बनाने मे लगी है। ऐसा होने पर डायरेक्ट दूध बेचने वाले छोटे डेरी किसानो को अपना दूध हर हाल मे बड़ी कंपनियों को ही बेचना पड़ेगा। क्योंकि फर्टिफिकेशन करने की मशीनें खरीदना आम पशुपालक के बस से बाहर की बात है। जबकि बड़ी कंपनियों को इसे फोर्टीफाईड करने की कॉस्ट मात्र 2 से 4 पैसे प्रति लीटर पड़ती है। ये डेरी पशुपालकों के लिए आने वाला बड़ा व्यावसायिक खतरा है।
सभी पशुपालक व उपभोक्ता दोनों अगर इकट्ठे होकर अपने हक़ मे आवाज उठाना नही सीखेंगे तो सारे कृषि उत्पादन का 29% टर्नओवर पैदा करने वाला दूध उद्योग किसानों के लिए बहुत जल्दी अनुपयोगी हो जाएगा, व भारत का शहरी वर्ग गाय भैंस के अमृत समान नेचुरल फ्रेश दूध के बजाये प्रोसेस्ड दूध पीने के लिए शापित होंगे।
भारत को Eat Fresh, Eat Local जैसे अमेरिकी आंदोलन की तत्काल घोर जरूरत है।