भूमिका
साल 2016 के अप्रैल महीने में मैं दिल्ली की एक कम्पनी का प्रतिनिधि बन कर मध्यप्रदेश के धार जिले में प्याज खरीदने वाली टीम में क्वालिटी एक्सपर्ट बन कर गया था और मैं साल 2007 से ग्रामीण आविष्कारकों और परम्परागत ज्ञान धारकों पर केन्द्रित एक सक्षम नाम से पत्रिका भी चलता हूँ इसी लिए मैं खिन भी जाऊं तो स्थानीय लोगों से यह अवश्य पूछता हूँ कि क्या आपके इलाके में ऐसा कोई व्यक्ति है जिसने अपनी सूझबूझ से कोई नया काम किया हो |
बस धार जिले के देहात में काम करने के दौरान मैंने स्थानीय किसानों से बातचीत के दौरान पूना काका के बारे में पता लगा लिया जो अपने आप में एक स्वयं प्रायोजित संस्थान के रूप में प्रकृति की सेवा कर रहे थे |
मध्य प्रदेश राज्य के धार जिले में स्थित गाँव उमरिया बड़ा जो आपको मेन रोड से अलग ही दिखाई पड़ता है क्योंकि बड़ , नीम , पीपल, ,आम जामुन, गूलर के बड़े बड़े पेड़ दिखाई देने लगते हैं । इन पेड़ों को पूना काका उर्फ़ पूनम चंद प्रजापति जी ने अपने हाथों से लगाया और बड़ा किया है ।
कौन हैं पूना काका
पूना काका ( उम्र 67 वर्ष) दोपहर में बस अड्डे पर ही मिल जाते है और उन्हें देख कर कोई यह अंदाजा नहीं लगा सकता कि इतना महान काम एक व्यक्ति ने बिना किसी सरकारी मदद के कर दिया और वे बिना किसी इच्छा,आकांक्षा, ईनाम, लोभ और लालच के अपने इस मिशन पर जुटे हैं।
कैसे मिले पूना काका
पूना काका के बारे में हमें गाँव की चौपाल में बैठे बुजर्गों से पता लगा जब हमारी उनसे यह सवाल किया कि आपके इस इलाके में इतने पेड़ क्यों हैं सवाल सुन कर श्री दुर्गालाल लोध बोल पड़े “अरे अपने पूना काका हैं ना ” इतना सुनकर हम यह समझ गए कि खजाना हाथ लग गया है ।
हमने चौपाल में बैठे गाँव के व्यक्तियों को अपने मिशन के बारे में बताया और सक्षम पत्रिका की कुछ पुरानी कापियां जिनमें लखनऊ के पास के मलिहाबाद के पद्मश्री हाजी कलीमुल्ला खान की कहानी छपी थी दी । हमने दुर्गालाल लोध जी से अनुरोध किया कि पूना काका से हमारी मुलाकात कराई जाये तो दुर्गा लाल जी ने कुछ फोन मिलाये और पूना काका के बारे में पूछा।
एक फोन वाले ने बताया कि पूना काका को थोड़ी देर पहले अड्डे के पास काँटों की बाड़ को ठीक करते हुए देखा था । हमने दुर्गा लाल जी से निवेदन किया कि हमारे साथ चलें और पूना काका से हमारी मुलाकात कराएं। अगले दस मिनट बाद हम सभी गाँव उमरिया बड़ा के अड्डे पर थे और दस मिनट के बाद दुर्गा लाल जी पूना काका को ढूंढ कर ले आये।
व्यक्तित्व
पूना काका का व्यक्तित्व साठ वर्ष के बच्चे के सामान था और उनसे बात करने पर पता लगा कि वे हिंदी भाषा अधिक नहीं समझते हैं और स्थानीय बोली “मालवी “ में ही जवाब देते हैं । दुर्गा लाल लोध जी हमारे लिए दुभाषिए का काम करना शुरू कर दिया और हमारे सवालों को समझ कर पूना काका को बताने लगे। हमें भी पूना काका की बातें थोड़ी बहुत समझ में आ रही थी और किसी विशेष शब्द को समझने में हमें दिक्कत होती तो दुर्गा लाल जी अपने आप ही हिंदी में बताने लगते।
पूना काका ने बताया उनके पिता जी का नाम श्री मांगी लाल प्रजापति है जिनकी मृत्यु लगभग 40 साल पहले हो चुकी है । पूना काका का मन बचपन से ही पेड़ पौधों में लगता था । घर में मिटटी के बर्तन बनने का पुश्तैनी काम था और थोड़ी बहुत जमीन थी जिससे आजीविका का जुगाड़ होता था ।
पूना काका को ना तो मिटटी के बर्तन बनने में रुचि थी और ना ही खेती बाड़ी के काम में । बीस वर्ष की आयु में आम का एक पेड़ लगाया और उसकी देख रेख करने लगे , कांटो की मजबूत से मजबूत बाड़ कैसे बनायीं जाये और नवजात पौधों के लिए खाद पानी की व्यवस्था कैसे की जाये इसी सोच विचार में पूना काका का समय व्यतीत होने लगा । पूना काका ने अपनी इच्छा से पारिवारिक जीवन की शुरुवात नहीं की।
कैसे काम करते हैं पूना काका
पूना काका की बावड़ियों और कुओं पर विशेष निगाह होती है क्योकि वहां पर उन्हें बड़ और पीपल के नवजात पौधे मिल जाते हैं , उन नवजात पौधों को कुओं और बावड़ियों से निकल कर वे पहले से तैयार की गयी नरम जमीन में रोपते हैं और उनकी रक्षा हेतु कांटेदार बाड़ की व्यवस्था करते हैं और चार वर्षों तक दिन में दो बार जाकर उनकी सम्भाल और देखभाल करते हैं। नवजात पौधों के आसपास ही दोपहर को किसी पेड़ की छाँव में आराम कर लेते हैं।
पूना काका के पास कमाई का ना तो कोई विचार है और ना ही उन्हें कोई विशेष इच्छा है वो बताते हैं कि उन्हें इस काम को करने से आज तक किसी ने नहीं रोका है और ना ही बुरा भला कहा है। मोबाइल फोन का उनके जीवन में कोई स्थान नहीं है और ना ही उन्हें इसे चलाना आता है। अपने हिस्से की जमीन अपने बड़े भाई शोभाराम प्रजापति को दे दी है। शोभाराम जी भी उमरिया बड़ा गाँव में ही रहते हैं और उनके चार बेटे हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं ।
- एक नम्बर रामेश्वर जो की नजदीक ही पीतमपूरा स्थान पर प्राइवेट नौकरी करता है
- दो और तीन नम्बर बंसी और कैलाश जो खेतीबाड़ी और मिट्टी बर्तन बंनाने का कार्य करते हैं।
- और चौथे नम्बर पर सबसे छोटा जगदीश मोटर साइकिल पर चाय पत्ती का व्यापार करता है ।
पूना काका को जब भी पैसों की आवश्यकता होती है तो वे अपने बड़े भाई से मांग लेते है। पूना काका को आजतक कभी किसी संस्था ने या सरकार ने उनके इस योगदान के लिए कोई पहचान या सम्मान नहीं दिलाया है ।
मान सम्मान और पहचान
हाँ एक बात जरूर है कि हर वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी के अवसर पर गाँव के स्थानीय स्कूल में उन्हें ध्वजारोहण के लिए मुख्याथिति के रूप में बुलाया जाता है और पांच सौ रूपये सम्मान के तौर पर स्कूल की और से भेंट किये जाते हैं। जब पूना काका से यह पूछा गया की उनके बचपन के दिनों में इस इलाके में कौन कौन से पेड़ थे और किस प्रकार की खेती की जाती थी।
इस पर उन्होंने बताया कि अड्डे पर खड़ा विशाल महुआ का पेड़ इनके बचपन में बिकुल वैसा ही थी जैसा आज दिखाई पड़ता है। उस ज़माने में किसान गेहूं चना कपास मक्का की खेती करते थे और पूरी खेती वर्षा आधारित थी।
हमने क्या सीखा
पूना काका से मिलकर और बात करने के बाद जीवन जीने के एक ऐसे पहलू के बारे में पता चला जिसकी कल्पना भी करना हमारे लिए असम्भव प्रतीत होती है।
सुबह और शाम का खाना अपने भाई के घर पर खा कर बाकी पूरा समय पेड़ों की रखवाली, सेवा सुरक्षा में बिता देना हमारे जैसे आधुनिक समाज में रहने वाले व्यक्तियों के लिए अकल्पनीय है ।
जब हमने पूना काका से पूछा की आपने आजतक कितने पेड़ लगाए है तो उन्होंने बड़ी सहजता से कहा कि ना तो मैंने कभी इनको गिना है और ना ही इनको गिनने की इच्छा है स्थानीय निवासी श्री दुर्गालाल लोध जी ने बताया कि पूना काका लगभग चार हज़ार पेड़ बड़े कर चुके हैं और सैंकड़ों पेड़ अभी नवजात अवस्था में हैं जो आने वाले दिनों में बड़े हो कर भूदृश्य को बदल देंगे |
मिले सृष्टि सम्मान
सक्षम पत्रक की टीम यह निवेदन करती है की पूना काका के इस कार्य को ” सृष्टि सम्मान के लिए उनकी प्रवष्ठि को सृष्टि संस्था विचार करे और उचित समझे जाने पर अपने प्रतिनिधि भेज कर और अधिक जानकारी एकत्र करे और ठीक पाए जाने पर सृष्टि सम्मान के लिए विचार करे।
पूना काका से पत्र व्यवहार का पता इस प्रकार है ।
पूनम चंद प्रजापति (पूना काका)
गाँव उमरिया बड़ा पोस्ट ऑफिस अनारद
तहसील व जिला धार मध्य प्रदेश
स्थानीय सम्पर्क :- श्री नन्द किशोर प्रजापति 9340426370
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