पंचकूला : सौरव मलिक देसी गाय के दूध से युवाओं को मिल रहे हैं रोजगार के अवसर
Saurav Malik Making Panchkula Healthy through Desi Cow Milk and Ghee
देश और प्रदेश के युवाओं का रूझान धीरे-धीरे स्व-रोजगार की तरफ बढ़ रहा है, हालांकि जितनी गति और संख्या में यह रूझान होना चाहिए, बनिस्पत उसके कम है परंतु संतोषजनक बात यह है कि धीरे-धीरे ही सही युवा सफल-असफल युवाओं की कहानियों एवं संघर्षों से प्रेरणा लेकर स्व-रोजगार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। आज हम एक ऐसे युवा सौरव मलिक की कहानी आपसे सांझा करेंगे, जिन्होंने बी.टेक. करने के बावजूद नंदिनी आर्गेनिक A2 मिल्क फार्म के माध्यम से पंचकूला शहर में परिवारों को शुद्ध एवं देसी गाय का दूध एवं घी उपलब्ध करवाया।
डेयरी सेक्टर में युवाओं के लिए कितनी व कैसे संभावनाएं हैं और इस काम को प्रोफेशनली तरीके से करने के लिए किस तरह का प्रशिक्षण एवं तजुरबे की जरूरत होगी, इन सभी पहलुओं पर हम सौरव मलिक के अनुभवों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। डेयरी उद्योग जिसे आमतौर पर पशुपालन का व्यवसाय भी कहा जाता है, यह व्यवसाय मूलतः दूध उत्पादन, प्रोसेसिंग और डिलीवरी सिस्टम पर टिका हुआ है।
आजकल शहरों में हर किसी की यह आम शिकायत है कि शहर में कहीं भी बढ़िया दूध नहीं मिलता। हर सामान में मिलावट ने जीना दुभर किया हुआ है। मिलावटी दूध के दौर में गौपालक सौरव मलिक जैसे युवा एक बेहतर विकल्प बनकर उभर रहे हैं और युवाओं के लिए स्व-रोजगार के नए अवसरों को भी खोल रहे हैं। सौरव मलिक का जन्म पंचकूला निवासी ओमप्रकाश मलिक और निर्मला देवी के घर हुआ। दरअसल ओमप्रकाश मलिक मूलतः गांधरी (रोहतक) के निवासी हैं और वे जब नौवीं के छात्र थे, तभी काम की तलाश में चंडीगढ़ आ गए थे। जिंदगी के तमाम उतार-चढ़ाव के बाद आजकल ओमप्रकाश मलिक इलेक्ट्रिकल कांट्रेक्टर का काम करते हैं।
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सौरव बताते हैं कि “जिस जमाने में हाऊसिंग बोर्ड चौक पर केवल खेत होते थे, उस जमाने में उनके पिताजी इस इलाके में अपना रोजगार तलाशने और करियर बनाने आ गए थे। सेक्टर 10 पंचकूला में सबसे पहला मकान हमने बनाया था।” सौरव ने पंचकूला के स्थानीय स्कूल से दसवीं के बाद अमृतसर के पॉलटेक्निक इंस्टीटयूट से इलेक्ट्रिकल ट्रेड से डिप्लोमा किया और उसके बाद रायपुर रानी स्थित श्रीराम मुल्ख इंस्टीटयूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल विषय में बी. टेक. की डिग्री पूरी की।
कायदे से ओमप्रकाश मलिक का मूल पेशा इलेक्ट्रनिक से संबंधित था, तो उनके बेटे के संस्कारों एवं रूझानों में इलेक्ट्रानिक फिल्ड की तरफ मजबूत पकड़ होना स्वाभाविक था, परंतु सौरव ने कुछ समय के लिए फूजी में इलेक्ट्रिकल में सेल्स मैनेजर पर सेवाएं देने के बाद खुद के व्यवसाय का मन बनाया और पहला हाथ आजमाया रेस्टोरेंट में। पंचकूला के सेक्टर 20 में कुछ समय रेस्टोरेंट चलाने के बाद भी सौरव का मन इस काम में रम नहीं पाया।
सौरव ने अपना आर्गेनिक मिल्क फार्म शुरू करने से पहले अपने आसपास के कुछ डेयरी फार्मों पर जाकर उनके अनुभवों से अपने अनुभवों में बढ़ोत्तरी की। सौरव का कहना है कि “चाणक्य जी कहा करते थे कि मनुष्य सब चीजों का खुद अनुभव नहीं कर सकता, इसलिए हमें आगे बढ़ने के लिए दूसरों के अनुभवों से बहुत कुछ सीखना पड़ता है। सभी चीजों का खुद अनुभव करने के लिए यह जीवन बहुत छोटा है। बस इसी मूल मंत्र के सहारे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।
अपने आसपास बढ़िया क्वालिटी के दूध की डिमांड हर दिन किसी न किसी के मुंह से सुनने को मिलती थी। इससे मुझे डिमांड का आइडिया हो गया था, बस सप्लाई सिस्टम और दूध के प्रोडेक्शन पर फोकस करना था। इन सभी कामों को प्रोफेशनल तरीके से करने के लिए मैंने मोहाली जिले के खरड़ के नजदीक चतमाली स्थित पंजाब डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के माध्यम से गौपालन का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह आइडिया पिताजी की प्रेरणा के बिना कभी पूरा नहीं हो पाता। उनके सुझाव और सहयोग के बलबूते ही मैंने पंचकूला के आउटस्कटर्स में एक छोटे से शेड से अपना काम शुरू किया।”
2019 में सक्षम अखबार के आंकड़ों के अनुसार उस समय सौरव मलिक के नंदिनी आर्गेनिक मिल्क फार्म (घग्घरपार मुबारिकपुर, डेरा बस्सी, बरवाला रोड़) में 47 देसी गाय थी। इन गायों में मुख्यतः थारपारकर, साहीवाल, हरियाणा, राठी नस्ल की गाय हैं। सौरव मलिक का गायों के साथ केवल व्यावसायिक रिश्ता नहीं था, बल्कि एक आत्मीय रिश्ता बन गया था। इस आत्मीयता में उन्होंने गायों के नामकरण सुंदरी, नंदिनी, भारती, लक्ष्मी, लाडो, सरपंच, प्रियंका, एक सींगवाली आदि किए हुए हैं। उनके फार्म पर थारपारकर नस्ल का सांड जोधा सिंह विशेष तौर पर आकर्षण का केंद्र है।
3 मार्च 2020 को कमलजीत जी ने सौरव मलिक जी से उनके अनुभवों बाबत बातचीत की थी।
कमलजीत जी लिखते हैं कि – “पंचकूला के आउटस्कर्ट्स में शिवालिक फुटहिल्स में बसे हरिपुर हिंदुआ गांव में भाई सौरव मलिक जी एक अनूठा उपक्रम चलाते हैं, जिसे नंदिनी जैविक मिल्क फार्म के नाम से स्थानीय लोग जानते हैं।सौरव ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी टेक करने के बाद कुछ समय तक कॉर्पोरेट सेक्टर का अनुभव लिया और फिर अपने दादा जी के जीवन के अनुभवों जिन्हें इन्होंने पिछले अनेक वर्षों में सुना था को तोल मोलकर यही विचार बनाया कि गौपालन करना सबसे श्रेष्ठ कार्य है और इसी में कैरियर बनाना चाहिए। अपनी माता जी और पिताजी की सलाह लेकर और उनको साथ लेकर शिवालिक फुटहिल्स में एक जगह तलाश कर देसी गौ वंशों की तलाश शुरू की।जिस जगह से अच्छी नस्ल की बछिया मिली उसे लाते चले गए और फिर पहले एक साल उनको पाला और एक साल के बाद दूध की प्राप्ति हुई।
आज सौरव के पास कुल मिला कर 55 जीव हैं और जिनमे से कुछ गाय दूध देती रहती हैं और लगभग 100 लीटर दूध पैदा होता है। पिछले तीन सालों में उपलब्धि यह है कि आज पंचकूला के कई सीनियर डॉक्टर्स गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए अपनी पर्ची पर सौरव के यहां पैदा हुआ दूध रिकमेंड करते हैं। सौरव एक कठिन अनुशासित शेड्यूल फॉलो करते हैं, जिसमें सुबह जल्दी उठने से लेकर दूध को डिस्ट्रीब्यूट करना शामिल है। सौरव बताते हैं कि अभी बहुत सारे बच्छे बछियां बड़े हो रहे हैं जो अगले दो तीन वर्षों में बड़े हो जाएंगे और तब फार्म अच्छी प्रॉफिटेबिलिटी देंने लगेगा। सौरव जैसे युवा बिरले हैं जिन्हें असल तंत समझ मे आ गया है, गौ विज्ञान क्या है गाय कैसा जीव है,गौबर गौमूत्र कितने जोरदार रसायन हैं। गाय के गोबर और गोमूत्र पर मख्खी नही आती है इसका प्रमाण देखना हो तो सौरभ साक्षात दिखा सकते हैं।
प्रसिद्ध गौपालक महक सिंह तरार साहब बताते हैं कि देसी गाय ऐसा जीव है जो 2 डिग्री से 48 डिग्री के तापमान में खुले में रह कर और रूखा सूखा खा कर बेशकीमती दूध देती है। बेशक वो दो लीटर हो तो भी घाटा नही है, क्योंकि उसका कोई मुकाबला नहीं है। यह बात हमारे फ़ूड साइंटिस्ट्स को बोल कर नही रुक्के मार-मार कर बतानी पड़ेगी। ग्यराहवीं शोधयात्रा में मेरी मुलाकात बीकानेर जिले के धीरेरा गांव में मांगीलाल गोदारा जी से हुई थी जो राठी गाय पालने के एक्सपर्ट हैं उन्होंने सारी बातों की एक बात बताई , उन्होंने कहा कि मेरी उम्र साठ वर्ष से अधिक है और आज तक मैंने कभी कोई गोली नही खाई। मेरी गाय भी पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं और जो जो बातें उन्होंने गाय के साथ अपने बिताये जीवन के विषय मे बताई वो मिसाल बन सकती हैं यदि ढंग से संकलित हो जाएं। सौरव के अनुभव भी बेशकीमती हैं और समय समय पर सौरभ के द्वारा किये गए नवाचारों और अनुभवों पर बातचीत लगा कर रखेंगे।”
दूध उत्पादन, प्रोसेसिंग से लेकर होम डिलीवरी सिस्टम
सौरव का मानना है कि जिंदगी की भागदौड़ के बीच हर इंसान यह हसरत रखता है कि उसे साफ-सुथरी एवं स्वच्छ खीने-पीने की वस्तुएं मिल जाएं और घर बैठे मिल जाए तो वारे के न्यारे हो जाते हैं। बस इसी मंत्र पर फोकस करके हमने दूध उत्पादन से लेकर होम डिलीवरी का पूरा सिस्टम तैयार किया हुआ है। हालांकि शुरू-शुरू में दूध उत्पादन में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर समय के साथ धैर्य बढ़ता गया और परेशानियों के समाधान निकलने एवं निकालने का हुनर आता गया। दरअसल किसी भी काम में मन रमने में थोड़ा समय लगता ही है, बस आपको धैर्य के साथ इस समय में सीखते हुए आगे बढ़ना होता है। बाकि मुश्किलें फिर अपने आप हल होने लगती हैं।
अक्सर डेयरी व्यवसाय से जुड़ने वाले युवा इस गलत फहमी का शिकार हो जाते हैं कि जैसे गांव में जिसको जरूरत होती है, वो दूध उत्पादन करने वाले के घर आकर दूध ले जाता है। ठीक वही काम शहर में होगा। दरअसल गांव में अड़ोसी-पड़ोसी को दूध बेचने और शहर में दूध सप्लाई करने में दिन-रात का अंतर होता है। दुनिया के सारे शहर सर्विस सेक्टर के सहारे खड़े हैं। जिस शहर में जितनी बेहतर सर्विस होती हैं, उस शहर का वैल्यू एडिशन उतना ज्यादा बढ़ जाता है।
शहर और गांव के बेसिक नेचर को समझे बगैर आपको सर्विस का गुणा-गणित समझ नहीं आएगा। एक तो शहर गांव की तरह जल्दी नहीं जगता, दूसरा गांव का एक छोटा व सीमित दायरा होता है, जबकि पंचकूला जैसा शहर पूरी तरह सेक्टरों में बसा हुआ है। डेयरी व्यवसाय करने वाले ज्यादातर लोगों को शुरू में सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना दूध को बिना खराब हुए सभी घरों तक पहुंचाने के काम में आती है। क्योंकि सुबह 4 बजे से दूध निकालने का काम शुरू हो जाता है। दूध जब निकलता है तो उसका तापमान ज्यादा होता है और बाहर के तापमान में आकर वह जल्दी खराब हो जाता है।
सौरव बताते हैं कि “इसके लिए डीप फ्रीजर के माध्यम से दूध का तापमान कम करना शुरू किया और इस तरह घरों तक दूध सप्लाई करना शुरू किया। जब यह काम शुरू किया था तो कुछ परिवारों ने ठंडा दूध लेते वक्त शिकायती लहजें में यह तक कह दिया था कि दूध में पानी की जगह बर्फ मिलाकर लाए हो क्या? अविश्वास की यह डोर हमारी ईमानदारी, मेहनत और लगन के बलबूते विश्वास की डोर में बदल पाई है। जैसे ही आपका फोकस इन तीन बेसिक चीजों से हट गया, वैसे ही आपके काम की गुणवत्ता प्रभावित होने लगेगी। इसलिए मैं स्व-रोजगार में हाथ आजमाने वाले सभी युवा साथियों को यही सलाह देता हूं कि जिंदगी में ईमानदारी, मेहनत, लगन और धैर्य का कभी कोई विकल्प नहीं होता। आपको आगे बढ़ने के लिए इन्हें अपने जीवन और व्यवहार का बेसिक बनाना पड़ेगा।”
स्वस्थ गाय, स्वच्छ दूध, निरोगी शरीर
सौरव मलिक के फार्म पर दो प्रोफेशनल वेटरिनरी डॉक्टर्स गायों के इलाज और स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए जुड़े हुए हैं, जो समय-समय पर गायों में फैलने वाली बीमारियों एवं रोगों के उपचार का खास ध्यान रखते हैं। ये डॉक्टर्स सप्ताह में विजिट करने भी आते हैं ताकि गायों को हर तरह के रोगों एवं तकलीफों से दूर रखा जा सके। हर प्रजाति की गाय की अपनी विशेषता के साथ-साथ अपना अलग बर्ताव एवं रवैया होता है। जिसका विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है। गाय भैसों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होती हैं। गायों को बालू मिट्टी में घूमना व बैठना ज्यादा पसंद होता है। इसलिए बालू मिट्टी की व्यवस्था का ध्यान रखा गया है।
नंदिनी आर्गेनिक मिल्क फार्म के बोर्ड पंचकूला के अनेक डॉक्टर्स के परामर्श केंद्रों पर लगे हुए हैं, ताकि जरूरत के रोगियों को स्वच्छ दूध उपलब्ध हो सके। इन रेफ्रेंस से सौरव के पास अच्छा कस्टमर तैयार हो गया है। करीब 45 घरों में दूध सप्लाई किया जा रहा है और 200 तक पहुंचने का लक्ष्य रखा हुआ है। नंदिनी फार्म की बढ़ती विश्वसनीयता का ही परिणाम है कि दूध के अलावा गाय के घी, दाल, चावल आदि पदार्थों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। दूध के अलावा सौरव ने ‘मॉम मेड घी’ नाम से घी का काम भी शुरू किया है। सौरव का कहना है कि गाय जब स्वस्थ होंगी तो उनका दूध स्वच्छ होगा और स्वच्छ दूध पीकर ही हमारा शरीर निरोगी बनेगा। इसलिए इस पूरी प्रक्रिया में गाय का स्वस्थ होना सबसे जरूरी है।
सौरव का मानना है कि हम कोई भी काम शुरू करते हैं तो हमारी यह इच्छा होती है कि हमें रेस्पेक्ट मिले, किए गए काम का रिवार्ड मिले और हमारे काम को एक रेकॉग्नेशन (पहचान) मिले। जब ये तीनों चीजें मिलने लगती हैं तो आपका उस काम में मन लगता है और अर्न भी अच्छा होता है।
सौरव जैसे युवाओं के माध्यम से हम डेयरी फार्म के क्षेत्र में अनंत संभावनाओं को साफ तौर पर देख सकते हैं और इस पेशे के साथ जुड़े चैलेंजिज हमारे अनुभवों का हिस्सा बन जाते हैं। जो युवा महानगरों एवं बड़े शहरों के आसपास कोई नया व्यवसाय करने का विचार कर रहे हैं या मन बना रहे हैं, उन्हें इस तरह की स्टोरिज से प्रेरणा मिलती है और मन में कुछ नए सवाल भी उठते हैं। इस पेशे से जुड़े आपके मन में भी कोई दुविधा या उलझन हो तो आपने अपने सवालों के माध्यम से पूछ सकते हैं।
डेयरी व्यवसाय में स्व-रोजगार की संभावनाओं को लेकर शामली उत्तरप्रदेश के मशहूर गौपालक महक सिंह तरार कहते हैं कि “भारत के 1 लाख करोड़ के डेयरी व्यवसाय में स्वरोजगार की असीमित संभावनाएं है। आज गिरते स्वस्थ के कारण युवाओं को हमारे पारंपरिक ज्ञान और पश्चिमी विज्ञान के बीच संतुलन से एक समग्र खानपान की अवधारणा स्थापित करने की जरूरत है। आज के युवा आधुनिक समाज की जरूरत को ध्यान में रखते हुए उत्पाद एवं सर्विसेज का संतुलित और कॉम्पिटिटिव मॉडल उपस्थित करे तो अभी 1 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला डेयरी सेक्टर 1 दशक में 2.5 करोड़ लोगों को सम्मानजनक व्यवसाय देने की क्षमता रखता है।
आज विश्व भर की बहुराष्ट्रीय डेयरी कंपनियां भारत के 135 करोड़ लोगों को उपभोक्ता की तरह देख रही हैं मगर पूंजी के केन्द्रीकरण वाले मशीनी समाधान वाली इन बड़ी-बड़ी कंपनियों के बजाए अगर सौरव मालिक जैसे नौजवानो को समाज बढ़ावा दे तो एक तरफ देश की पूंजी देश में रहेगी तथा उपभोक्ताओं के पास ताजे दूध के ज्यादा प्रामाणिक विकल्प बनेंगे।
अगर शहरी उपभोक्ता स्वच्छ ताजा सेहतमंद दूध का रास्ता खुला रखना चाहते हैं तो FSSAI द्वारा मानकीकरण के नाम पर बनाये जा रही कोर्टीफिकेशन जैसी नीतियों का विरोध खुलकर करें। अपने सरोकारों के प्रति उदासीन समाज आज अगर सौरव मालिक जैसे युवाओं के समर्थन के बजाए FSSAI द्वारा दूध को MNC के हवाले होते देख चुप रहता है तो गाय, ग्वाले और सेहत से हमेशा के लिये वंचित होने के कगार पर रहेगा।”
औमतौर पर देखा जाए तो भारत के ग्रामीण इलाकों में खेती और डेयरी मुख्यतः दो आय के मुख्य जरिए हैं। कईं रिपोर्टस के अनुसार 48 फीसदी दूध की खपत ग्रामीण स्तर पर हो जाती है और करीब 52 फीसदी दूध की बिक्री शहरों में होती है। विश्व के स्तर पर भारत दुध उत्पादन में पहले स्थान पर है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ डेयरी उद्योग ही है। ऐसे में अगर युवा इस क्षेत्र में पूरी ईमानदारी, मेहनत और लगन के साथ काम करें, तो इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं।