गाजर की खेती पूरे देश में की जाती है। यह एक महत्वपूर्ण जड़ वाली फसल है। इसका उपयोग सब्जी, सलाद, अचार और मिठाई आदि के लिए किया जाता है। गाजर में स्वाद के साथ ही अनेक गुण मौजूद होते हैं। इसमें आयरन, कॉपर, मैग्नीज, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, फोलेट, पैटोथेनिक एसिड आदि भरपूर मात्रा मे मौजूद होते हैं। गाजर का सेवन कैंसर और दिल के रोगों के खतरों को कम करता है। आंखों की रोशनी कम होने पर चिकित्सक गाजर खाने की सलाह देते हैं।
गाजर शीतोष्ण जलवायु का पौधा है। गर्म जलवायु में भी यह आसानी से उगाया जाता है। इसके बीज के अंकुरण के लिए 7-23 डिग्री तापमान की आवश्यकता पड़ती है
खेत की तैयारी: 2-3 बार देसी हल से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाकर सिंचाई की सुविधा की दृष्टि से नालियां बनाते हुए खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेना चाहिए।
बीज की मात्रा: एक हैक्टर क्षेत्रफल के लिए 8-10 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
बुआई और दूरी:- यह समतल क्यारियों या फिर मेड़ों पर बोई जाती है। इसके लिए कतार से कतार की दूरी 35 से 45 सेंमी. और पौधे से पौधे की दूरी 7-10 सेंमी. उपयुक्त होती है।
बुआई का समयः मैदानी भागों मे इस की बुआई मध्य अगस्त से मध्य अक्टूबर तक की जाती है जबकि यूरोपियन समूहों की किस्मों की बुआई नवम्बर-दिसम्बर में की जाती है।
सिंचाई जल प्रबन्धन: गाजर के बीज को उगने तक नमी की ज्यादा आवश्यकता होती है। गर्मी के मौसम में 8-10 दिनों के बाद सिंचाई की जरूरत होती है।
निराई-गुड़ाई: खरपतवार पर नियन्त्रण के लिए इसकी निराई-गुड़ाई आवश्यक है
कटाई का समय: गाजर को मुलायम अवस्था मे खेत से निकालें। खुदाई के बाद पत्तियों को हटाकर धुलाई करें। गाजर को क्रेट में भरकर बाजार भेजें।
कीट व रोग से बचाव: गाजर में कई प्रकार के कीट होते है। गाजर की सुरसुरी नामक एक कीड़ा है जो की गाजर के ऊपरी हिस्से में सुरंग बनाकर पहुंचते हैं। समय समय गाजर पर कीट नाशक दवाई का छिड़काव करें।